कर्मचारियों की पदोन्नति में बाधाए पैदा कर रही है शिवराज सरकार: सपाक्स

Bhopal Samachar
भोपाल। आज माननीय सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नति में आरक्षण के प्रकरण पर सुनवाई हेतु तिथि नियत थी, किन्तु इसके पूर्व के 02 अन्य प्रकरणों पर सुनवाई पूर्व से जारी रहने के कारण आज इस प्रकरण पर सुनवाई नहीं हो सकी है। राज्य सरकार द्वारा आज फिर एक नया आवेदन लगाया गया है जिसमें प्रकरण पर सुनवाई अगले वर्ष जनवरी में किये जाने का अनुरोध किया गया है। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार द्वारा वर्ग विशेष के पक्ष में होकर प्रकरण में विलंब करने की लगातार कोशिश की जा रही है। 

पूर्व में भी राज्य सरकार द्वारा 04 हफ्ते का समय मांगा गया था, किन्तु सपाक्स के अधिवक्ताओं द्वारा पुरजोर विरोध किये जाने के फलस्वरूप माननीय न्यायालय द्वारा सरकार को दो हफ्ते का समय देकर प्रकरण पर सुनवाई हेतु दिनांक 23 नवम्बर 2016 की तिथि निर्धारित की गई थी।

सपाक्स का मानना है कि सरकार के पास प्रकरण में रखने हेतु कोई तार्किक तथ्य नहीं है इसके बावजूद भी सरकार एक वर्ग विशेष के पक्ष में रहते हुये सामान्य पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग के अधिकारियो/कर्मचारियों की उपेक्षा कर रही है जिनकी संख्या सरकार में 75 प्रतिशत से अधिक है। यहॉ यह उल्लेखनीय है कि सामान्य पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग के लाखों शासकीय सेवक असंवैधानिक पदोन्नति नियम 2002 के कारण अपने पूरे शासकीय सेवाकाल में बिना एक भी पदोन्नति के सेवानिवृत्त हो चुके हैं। 

इस वर्ग के शासकीय सेवकों द्वारा कई वर्षो की कानूनी लड़ाई के बाद माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा इन असंवैधानिक पदोन्नति नियमों को दिनांक 30 अप्रैल 2016 को निरस्त किया गया था। माननीय न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय से इस वर्ग के अधिकारियों/कर्मचारियों में पदोन्नति की उम्मीद जागी थी। सरकार द्वारा अनावश्यक रूप से मामले को लम्बा खीचने की दृष्टि से माननीय सर्वोच्च न्यायालय में एस.एल.पी. दायर कर दी गई जबकि माननीय उच्च न्यायालय का निर्णय माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देशों के अनुक्रम में ही था। माननीय सर्वोच्च न्यायालय में सरकार द्वारा लगातार समय मांगे जाने से प्रकरण लम्बा खिंच रहा है और इस दौरान इस वर्ग के हजारों शासकीय सेवक पदोन्नति से वंचित रहकर सेवानिवृत्त होते जा रहे हैं।

सरकार से अपील है कि गत् 14 वर्षो से पदोन्नति से वंचित सामान्य पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग के अधिकारियों/कर्मचारियो को माननीय न्यायालय से मिलने वाले न्याय में नित नये अवरोध पैदाकर अनावश्यक विलंब करने का प्रयास न करे, अन्यथा इस वर्ग के अधिकारियों/कर्मचारियों को आंदोलन की राह पर चलने के लिये बाध्य होना पड़ेगा जिसके लिये सरकार स्वयं जिम्मेदार होगी।

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