
नाभा जेल की तरह ही कुछ साल पहले बाहरी लोग पुलिस की वर्दी में दिल्ली की अतिसुरक्षित मानी जाने वाली तिहाड़ जेल में घुसे और फूलन देवी के हत्यारे शेरसिंह राणा को भगाने में कामयाब हुए थे। विचित्र है कि इन तमाम घटनाओं के बावजूद जेलों की सुरक्षा व्यवस्था को भरोसेमंद बनाने के इंतजाम नहीं हो पाए हैं।
नाभा जेल से कैदियों के फरार होने की घटना इसलिए भी चिंता का विषय है कि पंजाब में उभरा जो अलगाववादी आंदोलन शांत पड़ चुका है, उसका मुखिया मंटू बाहर निकल कर परेशानी का सबब बन सकता है। पंजाब सरकार ने खुद माना है कि मंटू के तार सीमा पार पाकिस्तान की खुफिया एजंसी आइएसआइ और आतंकवादी संगठनों से जुड़े हैं। उसने यहां तक माना है कि मंटू को फरार कराने में पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों का हाथ है। तो क्या पाकिस्तान शांत पड़ी पंजाब की अलगाववादी आग को फिर से हवा देने की कोशिश में है! जम्मू-कश्मीर में अशांति का माहौल पहले ही सरकार के लिए सिरदर्दी बना हुआ है, अगर पंजाब में भी अलगाववादी ताकतें सिर उठाती हैं तो प्रशासन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
जेलों में सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम को लेकर लंबे समय से सुझाव दिए जाते रहे हैं, पर इन पर अमल में सरकारें नाकाम ही रही हैं। दरअसल, जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों को रखने की वजह से सुरक्षा व्यवस्था को लेकर खामियां पैदा होती गई हैं। कैदियों के अनुपात में जेलकमिर्यों की संख्या न होने के कारण अक्सर कैदी फरार होने की अपनी योजनाओं में कामयाब हो जाते हैं। नाभा जेल से फरार कराए गए कैदियों के बारे में बताया जा रहा है कि उन्हें अदालत में पेश करने के लिए ले जाया जाना था। वे जेल के मुख्य द्वार पर मौजूद थे। उसी वक्त दो गाड़ियों में सवार होकर बाहरी लोग आए और उन्हें भगा ले गए। भोपाल में तो आधी रात को इस तरह के वाकये कोंजम दिया गया | जाहिर सी बात है कि बाहरी लोगों ने इस घटना को अंजाम देने की तैयार बहुत पहले से कर रखी थी। उन्हें कैदियों के बाहर निकलने का समय, जेल सुरक्षाकमिर्यों की गतिविधियों आदि की पुख्ता जानकारी रही होगी। अगर जेलों की सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता करने के मामले में गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया तो इस तरह की परेशानियों से पार पाना मुश्किल होगा।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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