
एनकाउंटर कोई भी हो, कभी भी हो और कहीं भी हो, उस पर सवाल उठते ही हैं, क्योंकि वो भारत की न्याय व्यवस्था के तहत नहीं होता। सुप्रीम कोर्ट आदेश दे चुका है। हर एनकाउंटर की न्यायिक जांच होनी ही चाहिए तो फिर भोपाल एनकाउंटर की जांच कराने में आपत्ति क्या है। सवाल उठाने वालों को उठाने दो, दर्द क्यों हो रहा है। सत्ता पर सवाल तो हमेशा से उठाए जाते रहे हैं। कुछ समय पहले तक तुम भी उठाया करते थे। पेट्रोल के दाम बढ़ते थे तो साइकल चलाया करते थे। अब बढ़ते हैं तो दूसरों को साइकल चलाने में तकलीफ क्यों होती है।
उनके पास से ढेर सारे ड्रायफ्रूट्स मिले हैं, कहां से आए। किसने दिए। कौन गद्दार आतंकवादियों को मुष्टंडा बना रहा था। सबके पैरों में एक जैसे जूते मिले हैं। किस देशद्रोही ने उन्हें जूते दिए। पता लगाओ। केवल बर्खास्त मत करो। एफआईआर करो, जेल में डालो। देशद्रोह की धाराएं लगाओ। सत्ता में हो तो सत्ता जैसे काम करो।
भरे मंच से जनता को बहकाने वाले भाषण सत्ता की तरफ से पहली बार आ रहे हैं। आपने जो भी किया सब सही, कोई कोर्ट नहीं, कोई विधान नहीं, कोई संविधान नहीं। जो फरार हुए मैं उन्हे कार्यकर्ता नहीं हमेशा ही आतंकवादी बुलाता रहा हूं, सरकार के रिकार्ड में जरूर वो सिमी कार्यकर्ता हैं। सरकार आपकी है, फास्ट ट्रेक कोर्ट बनाओ, किसने रोका है। 8 मारे गए, कोई बात नहीं। बीती बातें छोड़ों। असली देशभक्त हो तो अब फास्ट ट्रेक कोर्ट बनाओ। स्पेशल जज नियुक्त करो। 21 अभी भी जेल में बचे हैं। महंगे से महंगा वकील करो। सजा-ए-मौत दिलवाओ। परेशानी क्या है। क्यों उन्हें जेलों में मेहमान बना रखा है ? देशभक्त हो तो विधिसम्मत सजाएं दिलवाओ या फिर खुलकर कहो कि तुम भारत के कानून में विश्वास नहीं रखते, तानाशाह हो गए हो।