मोदी से टक्कर लेने हिंदी सीख रही है बंगाल की शेरनी

Bhopal Samachar
कोलकाता। सियासत और भाषा का क्या संबंध? पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जो कुछ कर रही हैं, उससे तो साबित हो गया कि सियासत में आगे बढ़ना है तो भाषाई ज्ञान अहम भूमिका निभा सकता है। खबर है कि दीदी की निगाहें दिल्ली पर हैं और इसके लिए वे हिन्दीं सीख रही हैं। हिन्दी का टीचर लगाया गया है और बंगाली-हिन्दी डिक्शनरी साथ लेकर घुम रही हैं।

पार्टी सूत्रों के मुताबिक, बंगाल की सत्ता पर कब्जा जमाने के बाद अब ममता राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि चमकाना चाहती हैं। हाल ही में नोटबंदी का विरोध करने के लिए उन्होंने दिल्ली के जंतर-मंतर में रैली की थी। अब खबर है कि वे लखनऊ और पटना में रैलियां कर मोदी का विरोध करने की तैयारी में हैं। इन दो बड़ी रैलियों से पहले ममता अपनी हिन्दी सुधारने की जद्दोजहद में जुटी हैं।

इससे पहले ममता बनर्जी मान चुकी हैं कि उनकी हिन्दी में सुधार की बहुत गुंजाइश है। बकौल ममता, 1984 से मैं दिल्ली में थीं। पहली बार सांसद बनकर सदन पहुंचीं। मंत्री बनीं। तब मैं अच्छी हिन्दी जानती थीं, लेकिन उसके बाद सालों तक कोई मौका नहीं मिला। खासतौर पर 2011 के बाद से हिन्दी में न के बराबर हो गया है।

ममता के करीबी टीएमसी नेता ने एक अंग्रेजी अखबार को बताया कि नोटबंदी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खेद जताया था कि लोगों को लंबी-लंबी लाइनों में लगना पड़ रहा है। पीएम के इस बयान के बाद ममता भी बयान जारी करना चाहती थीं, लेकिन हिन्दी में क्या कहा जाए, यह समझ नहीं आया। उन्हें किसी हिन्दी भाषी की मदद लेना पड़ी।

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