नईदिल्ली। नोटबंदी से पहले बिहार में बड़े पैमाने पर खरीदी गई जमीनों का मामला अब गर्मा गया है। शुक्रवार को दिनभर इसे लेकर सियासत होती रही। कैच ने दावा किया है कि भाजपा ने सारी खरीद या इसमें से बड़ा हिस्सा नगद किया था। सवाल यह है कि यदि खरीद लीगल थी तो इतना बड़ा पेमेंट नगद क्यों किया गया। पढ़िए कैच की यह रिपोर्ट:
कैच की पड़ताल पर सफ़ाई देते हुए सुशील मोदी अपनी कॉन्फ्रेंस में इसे वैध तरीके से की गई खरीद बताते रहे. उनकी जानकारी के मुताबिक भुगतान डिमांड ड्राफ्ट के जरिए हुआ लेकिन कैच ने इस खरीद से जुड़े कुछ लोगों से बातचीत की. इसके अलावा खरीद-फरोख्त को कवर कर रहे कुछ अन्य लोगों से भी बातचीत की. हालांकि मामला बढ़ता देख कोई भी अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहता लेकिन इस लेनदेन में शामिल कम से कम दो लोगों ने बताया कि भुगतान नगदी के रूप में हुआ है. एक सौदे में पक्षकार ने बताया कि 70 लाख रुपया नगद देकर रजिस्ट्री कराई गई. अन्य खरीददारों से संपर्क की कोशिशें नाकाम रहीं. सभी लोगों ने अपना फोन उठाना बंद कर दिया है.
सवाल उठता है कि जमीन खरीदने में गलत क्या है?
जमीनें खरीदना कोई अपराध नहीं है लेकिन जिस समय के इर्द-गिर्द इन जमीनों की खरीद-फरोख्त हुई, वह कई तरह के सवाल खड़ा करता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर को घोषणा की कि आधी रात के बाद से 1000 और 500 के नोट अवैध हो जाएंगे. प्रधानमंत्री ने बाद में यह भी कहा कि नोटबंदी की तैयारी वे छह महीने से कर रहे थे. इसकी जानकारी सिर्फ भाजपा के कुछ शीर्ष नेताओं और नौकरशाहों को थी.
बिहार के लगभग दर्जन भर जिलों में भाजपा ने जिन जमीनों को खरीदा वो अगस्त से लेकर नवंबर के पहले हफ्ते में खरीदे गए. जमीनों की खरीद में सिग्नेटरी बनाए गए भाजपा विधायक संजीव चौरसिया ने कैच को बताया कि उन्हें केंद्रीय नेतृत्व से जमीन खरीदने का आदेश मिला था. पैसे भी वहीं से आए थे. बकौल भाजपा नेता प्रेम कुमार, 'हमने जमीनों की खरीद की है. इसका उद्देश्य हर जिले में पार्टी का मुख्यालय स्थापित करना है. हम तो अभी भी जमीनें खरीद रहे हैं.'
अब इन खरीद के पीछे की मंशा का सवाल आता है.
जो शीर्ष नेतृत्व छह महीने से नोटबंदी की तैयारी कर रहा था, वही शीर्ष नेतृत्व अगर संजीव चौरसिया पर भरोसा करें तो अपनी स्थानीय इकाइयों को चार महीने पहले से पैसा भेजकर बड़ी मात्रा में जमीनें खरीदने का आदेश दे रहा था. क्या यह हितों का टकराव नहीं है?
नोटबंदी के ठीक पहले पार्टी को युद्धस्तर पर जमीनें खरीदने की जरूरत क्यों पड़ी? क्या पार्टी अपने पैसे को रियल एस्टेट में बदल कर नोटबंदी के असर से खुद को बचा रही थी? इन सवालों का जवाब सुशील मोदी ने नहीं दिया.
नगद भुगतान हुआ?
इस लेनदेन में अहम किरदार रहे भाजपा नेता लाल बाबू सिंह ने एक दिन पहले एक टीवी चैनल से बातचीत में नगदी लेनदेन की बात स्वीकारी थी लेकिन जब कैच ने उनसे संपर्क किया तो उन्होंने बीमार होने, डॉक्टर के यहां होने की बात कहकर किसी भी तरह की बातचीत करने से इनकार कर दिया.
खरीददारों में नामजद एक अन्य भाजपा नेता दिलीप जायसवाल जो कि भाजपा के कोषाध्यक्ष भी हैं, ने फोन उठाना ही बंद कर दिया है. जानकारी के मुताबिक दिलीप जायसवाल किशनगंज में अपना मेडिकल कॉलेज भी चलाते हैं.
दल और उनके चंदे का स्रोत
राजनीतिक पार्टियां अपने चंदे के स्रोत का खुलासा एक कानून की आड़ लेकर कभी नहीं करती हैं. सियासी दल कहते हैं कि उन्हें सारा पैसा चंदे के रूप में आता है जो हमेशा ही 20 हजार से कम होता है. लिहाजा उन्हें इसके स्रोत की जानकारी सार्वजनिक करने की जरूरत नहीं है. इसी बूंद-बूंद को जुटाकर भाजपा ने करोड़ों रुपए की जमीनें देश भर में नोटबंदी से ठीक पहले खरीदी हैं.
भाजपा नेता सुशील मोदी कहते हैं, 'ज़मीनों की ख़रीद-फ़रोख्त में सभी नियम-कानून का पालन किया गया है.' उनका दावा यह भी है कि इसमें किसी तरह की वित्तीय हेराफेरी नहीं हुई है. मोदी ने कहा, 'प्रॉपर्टी ख़रीदने के लिए लोन लेना अवैध नहीं है. जहां तक मुझे पता है कि ज़मीन ख़रीदने के लिए भुगतान डिमांड ड्राफ्ट से किया गया है ना कि कैश में. अगर कुछ भी गड़बड़ी हुई है तो बिहार सरकार के पास इसकी विस्तृत जानकारी होगी.'
उन्होंने कहा कि नोटबंदी की घोषणा इस हद तक गोपनीय थी कि प्रधानमंत्री और कुछ अन्य महत्वपूर्ण लोगों के अलावा इसकी ख़बर किसी को भी नहीं थी. सुशील मोदी ने यह भी कहा, 'यहां तक कि वित्तमंत्री अरुण जेटली को भी इसकी भनक नहीं थी.'
वहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता सुधांशु मित्तल कहते हैं, 'देश में ज़मीनों की ख़रीद-फ़रोख्त पार्टी की दीर्घकालिक योजना के तहत हुई है और ज़मीन ख़रीदने का कार्यक्रम डेढ़ साल से चल रहा है.' मित्तल आगे कहते हैं, 'पार्टी की कमान अमित शाह के संभालने के बाद से ही ज़िला स्तर पर भाजपा कार्यालय खोले जाने की कोशिशें हो रही थीं. इसे नोटबंदी से जोड़ना विकृत मानसिकता की काल्पनिक उड़ान भर है.'
विपक्ष ने जांच की मांग उठाई
दूसरी तरफ़ कई विपक्षी पार्टियों ने इस ख़रीद-फ़रोख्त की जांच की मांग की है. आम आदमी पार्टी के नेता राघव चढ्ढा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, 'शुरू में कुछ संदिग्ध रिपोर्टें आई थीं. जैसे भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई ने 500 और 1,000 के नोटों वाले तीन करोड़ रुपए नोटबंदी का ऐलान होने से महज़ कुछ घंटे पहले बैंक में जमा कराए थे. मगर भाजपा ज़मीनों की ख़रीद-फ़रोख्त भी कर रही थी, तो शक़ की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती.'
जनता दल यूनाइटेड ने भी इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग की है. पार्टी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में इस डील की जांच होनी चाहिए. शुक्रवार की दोपहर में कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने संसद भवन में मांग की कि इस डील की जांच हो और भाजपा की केंद्रीय और सभी राज्य इकाइयों द्वारा बीते एक साल में खरीदी गई सभी संपत्तियों की जांच हो.