भोपाल। मप्र के बीमा अस्पतालों में हुए 14 करोड़ के घोटाले की जांच आरोपी आईएएस एमके वार्ष्णेय ने खुद ही बंद कर दी। एपी सिंह, प्रमुख सचिव विधान सभा का कहना है कि यदि शिकायतकर्ता विधायक को मंत्री बना दिया जाए तो उसके द्वारा की गई शिकायतों की जांच बंद कर दिए जाने का नियम है। इधर शिकायतकर्ता विधायक एवं मंत्री विश्वास सारंग आश्चर्यचकित हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है। शिकायतकर्ता कोई भी हो, शिकायत घोटाले की है और उसकी जांच तो होनी ही चाहिए। पढ़िए भोपाल के पत्रकार धनंजय प्रताप सिंह की यह रिपोर्ट:
सामान्य प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव एमके वार्ष्णेय का एक और कारनामा सामने आया है। बीमा अस्पताल में 14 करोड़ की खरीदी में गोलमाल किए जाने के एक मामले में अपने खिलाफ चल रही जांच को एमके वार्ष्णेय ने खुद ही बंद कर दिया।
श्रम विभाग के प्रमुख सचिव रहने के दौरान वार्ष्णेय पर बीमा अस्पतालों के लिए 14 करोड़ की इस्टूमेंट खरीदी में हुई गड़बड़ी में शामिल होने का आरोप लगाया था। इसी साल हुए विधानसभा के बजट सत्र में विश्वास सारंग ने 35 हजार की आपरेशन किट को 9 लाख में खरीदने का आरोप लगाते हुए प्रश्न और संदर्भ समिति से सारे मामले की जांच कराने की मांग की थी।
आरिफ अकील सहित कई विधायकों ने सारंग का समर्थन भी किया था। इसके बाद सरकार ने वार्ष्णेय को श्रम विभाग से हटाकर सामान्य प्रशासन विभाग का पीएस बना दिया था और संदर्भ समिति से उक्त मामले की जांच कराने की घोषणा की थी, लेकिन श्रम विभाग के नए प्रमुख सचिव बीआर नायडू जून में अवकाश पर गए तो विभाग का चार्ज एक बार फिर वार्ष्णेय को ही सौंप दिया गया, इसका फायदा उठाते हुए वार्ष्णेय ने जांच में सारी लीपापोती कर दी।
मई महीने में विधानसभा की संदर्भ समिति से जांच कराने के लिए श्रम विभाग के अपर सचिव मिलिंद गणवीर ने इंदौर कमिश्नर संजय दुबे को पत्र भेजकर जांच प्रतिवेदन मांगा था, लेकिन जैसे ही वार्ष्णेय को चार्ज मिला उन्होंने 13 जून को इंदौर कमिश्नर को पत्र लिखा कि इस मामले में विधानसभा सचिवालय को जांच प्रतिवेदन शासन स्तर से भेज दिया गया है इसलिए अब किसी प्रकार की जांच की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है।
विधानसभा सचिवालय ने भी नियमों की आड़ में जांच प्रकरण को बंद कर दिया। इससे पहले ग्वालियर में छह सौ एकड़ जमीन को सीलिंग मुक्त किए जाने के मामले में भी वार्ष्णेय चर्चा में रहे हैं वो एक महीने में रिटायर्ड भी होने वाले हैं।
गायब भी हो गए उपकरण
बीमा अस्पतालों के लिए जो खरीदी की गई थी, उसमें से बहुत से उपकरणों की अब तक पैकिंग तक नहीं खोली गई है। सूत्रों का दावा है कि ज्यादातर खरीदी बिना जरूरत के की गई थी। इंदौर के नंदानगर स्थित कर्मचारी राज्य बीमा चिकित्सालय के लिए नाक, कान, गले के इलाज के लिए जो उपकरण खरीदे गए थे वे गायब भी कर दिए गए। प्रभारी चिकित्सक ने बाकायदा इसकी एफआईआर दर्ज करने के लिए हीरानगर थाना इंदौर को सूचना दी थी लेकिन अब तक अपराध दर्ज नहीं किया गया।
विधानसभा सचिवालय ने उठाया नियमों का फायदा
प्रमुखसचिव वार्ष्णेय ने खुद के खिलाफ जांच को बंद करने के लिए 13 जून को विधानसभा सचिवालय को पत्र भेजा था । इस खेल में सचिवालय ने नियमों की आड़ ली और सारे मामले को रफा दफा कर दिया ।प्रश्न और संदर्भ समिति में मामला दर्ज था इसके बावजूद जांच बंद कर दी गई।
नियमों में यह प्रावधान भी है
ऐसे मामलों में विधायक जब मंत्री बन जाते हैं तो उन्हें साक्ष्य के लिए नहीं बुलवाया जा सकता है इसलिए जांच प्रकरण बंद कर दिए जाते हैं। नियमों में यह प्रावधान भी है।
एपी सिंह, प्रमुख सचिव विधान सभा
मैं तो आश्चर्यचकित हूं
मुझे तो आश्चर्य हो रहा है कि इतने संवेदनशील मामले को कैसे बंद किया जा सकता है। इस मामले की पूरी जांच होना चाहिए।
विश्वास सारंग, सहकारिता राज्य मंत्री