राकेश दुबे@प्रतिदिन। एक तरफ देश में बुलेट ट्रेन चलाने का सपना दिखाया जा रहा है, दूसरी तरफ रेल का बुनियादी ढांचा इतना जर्जर है कि वह लोगों की जान के लिए आफत बन रहा है। कानपुर के पुखरायां में रविवार तड़के इंदौर-पटना एक्सप्रेस के 14 डिब्बे जिस तरह ट्रैक से उतरे हैं, वह सरासर लापरवाही और देखरेख में ढीलेपन का नतीजा है। लगभग डेढ़ सौ लोगों की जान लेने वाले इस हादसे की वजह ड्राइवर ने अपनी रिपोर्ट में लर्चिंग को बताया है।
इसका अर्थ है, सामने गड्ढा आ जाने से गाड़ी का ऊपर नीचे या इधर-उधर होना। कहा जा रहा है कि पिछले कई महीनों से झांसी लोकोशेड के कई ड्राइवर इस जगह पर लर्चिंग महसूस कर रहे थे। फिर भी कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई? चूंकि ट्रेन की बीच वाली बोगियां पलटी हैं, इसलिए ट्रैक में फ्रैक्चर को दुर्घटना की वजह बताया जा रहा है। रेलगाड़ियों के चलने से ट्रैक में हल्की-फुल्की दरारें पड़ जाती हैं, जो अक्सर पकड़ में भी आ जाती हैं। दिल्ली-मुंबई, दिल्ली-कोलकाता, दिल्ली-चेन्नई और कोलकाता-मुंबई जैसी मेन लाइनों पर अल्ट्रासोनिक वॉल डिटेक्शन से नियमित तौर पर इनका पता लगाया जाता है। लेकिन बाकी रूटों में यह जांच डेढ़-दो महीने के अंतराल पर होती है। यह समय कभी-कभी तीन महीने तक भी खिंच जाता है।
सवाल है कि इंदौर-पटना ट्रैक की आखिरी जांच कब हुई थी? क्या जांच को दरकिनार कर इस पर ट्रेनें चलाई जा रही थीं? बीते कुछ सालों से भारतीय रेलवे ट्रैक्स पर लोड बढ़ता ही जा रहा है। सवारी गाड़ियों का ही नहीं, माल ढुलाई का भी। मालगाड़ियां प्राय: ओवर लोडेड चल रही हैं। अगर किसी मालगाड़ी की अधिकतम क्षमता ७८ टन की है, तो उस पर 80-82 टन माल की ढुलाई हो रही है। इससे ट्रैक के टूटने का खतरा बढ़ जाता है। संभव है कि इंदौर-पटना एक्सप्रेस ट्रेन जिस ट्रैक से गुजर रही थी, वहां कुछ समय पहले गुजरी मालगाड़ियों के कारण क्रैक बनने शुरू हो गए हों। विडंबना यह है कि भारतीय रेलवे के पॉपुलिज्म का शिकार होने का जो सिलसिला पिछले बीस वर्षों से चल रहा है, उसके टूटने की कोई संभावना आज भी नजर नहीं आ रही।
रेल मंत्री ट्वीटबाजी से वाहवाही बटोर रहे हैं, जमीनी काम पर उनका कोई ध्यान नहीं है। रेलवे में सेफ्टी और सिक्युरिटी डिविजन में करीब डेढ़ लाख पद खाली हैं। रेल सुरक्षा से जुड़ी काकोदकर समिति की रिपोर्ट अभी तक लागू नहीं हो पाई है। इसके लिए डेढ़ लाख करोड़ रुपयों की जरूरत है, जो प्राथमिकता में कहीं नहीं है। सरकार रेलवे को इंटरनेशनल बनाने के लिए जो भी चाहे करे, पर उसे यात्रियों की सुरक्षा को अजेंडे में सबसे ऊपर रखना होगा।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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