उपदेश अवस्थी/भोपाल। शहडोल उपचुनाव में आए परिणाम ना तो नोटबंदी पर जनता की मोहर है और ना ही मप्र में शिवराज सिंह चौहान की स्थापित लोकप्रियता का प्रमाण। यह तो हिमाद्री के मुगालता और कमलनाथ के ओवर कांफीडेंस पर करारी चोट है। यह अलार्म है भोपाल से दिल्ली तक की कांग्रेस के लिए कि यदि नहीं सुधरे तो विधानसभा और लोकसभा के चुनावों में भी यही होगा।
हिमाद्री के मुगालता क्या
टिकट मिलने से पहले तक हिमाद्री सिंह आम मतदाताओं के लिए सहज उपलब्ध थी। उनके दुख सुख में आती जाती थी परंतु राहुल गांधी से मुलाकात और टिकट मिलने के बाद तो जैसे हिमाद्री का व्यवहार ही बदल गया था। वो खुद को सांसद मान बैठी थी, या शायद इससे भी कुछ ज्यादा। उसे राहुल गांधी की पसंद क्या बताया गया वो बाकी सबको खुद से बहुत छोटा समझने लगी थी। भाजपा ने जब ज्ञान सिंह के नाम का ऐलान किया तो हिमाद्री को लगा कि भाजपा ने उसे वाकओवर दे दिया है। अब तो बस दिखावे की लड़ाई रह गई है। वोटिंग ओर काउंटिंग तक का इंतजार शेष है। इसी मुगालते ने हिमाद्री को काग्रेस कार्यकर्ताओं और आम जनता से दूर कर दिया।
कमलनाथ का ओवर कांफीडेंस
राज्यसभा के चुनाव में कमलनाथ ने कांग्रेस के शक्तिशाली प्रत्याशी विवेक तनखा के मुकाबले में सामने आए एक पिद्दी पहलवान को क्या हरा दिया, खुद को चक्रवर्ती सम्राट समझ बैठे। शहडोल के सहारे श्यामला हिल्स तक की सीढ़ियां चढ़ने की प्लानिंग किए बैठे थे। हिमाद्री को अपने अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े की तरह छोड़ दिया था। समझ रहे थे कि वयोवृद्ध ज्ञानसिंह क्या कर पाएगा। शिवराज सिंह का विरोध चल रहा है। हर तरफ से फायदा ही फायदा होना है। खुद को इलेक्शन मैनेजमेंट में पीएचडी मानने लगे थे। जबकि जमीनी हकीकत कुछ और थी। हालात यह थे कि कमलनाथ दिल्ली से हिमाद्री के लिए चुनाव प्रचार का पैसा तक नहीं ला पाए। नोट की कमी का सीधा असर वोट पर पड़ा। जनता ने कमलनाथ के सामने शिवराज को चुन लिया। जिसका वो लगातार विरोध करती आ रही है और आगे भी करती रहेगी। यह शिवराज के सामने कमलनाथ की करारी हार है, वो एक जीती हुई बाजी हार चुके हैं और यही लाइन रिकॉर्ड में दर्ज कर ली जानी चाहिए।