कानपुर। इंदौर-पटना रेल हादसे में परिवार के इकलौते बचे अभय श्रीवास्तव को शिवराज सिंह चौहान ने गोद तो लिया लेकिन अस्पताल उसे बचा न सके. मध्यप्रदेश से आए डॉक्टरों ने कानपुर के हैलट अस्पताल प्रबंधन पर बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि न तो खुद उचित इलाज किया न हमें छूने दिया. हमारी टीम अस्पताल के बाहर कुर्सी पर बैठी रही और अभय चला गया. कहा अगर कानपूर का हैलट अस्पताल ध्यान देता तो अभय की जान बच जाती.
अपने मां-पिता और भाई बहन को इस रेल हादसे में खोने के बाद अभय श्रीवास्तव इकलौता सदस्य बचा था जो पिछले 48 घंटो से जिंदगी और मौत से जूझ रहा था, लेकिन मंगलवार तड़के उसने कानपुर के अस्पताल में आखिरी सांस ली.
इंदौर के अभय का परिवार इस हादसे में खत्म हो गया, लेकिन एमपी से आई डॉक्टरों की टीम लाचार अभय को देखती रही. लेकिन हैलेट अस्पताल ने उन्हें छूने नहीं दिया और वो अभय चला गया. हादसे में घायल मरीजों को देखने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह कानपूर के हैलेट अस्पताल आए थे, लकिन जब उन्हें पता लगा की इंदौर का अभय अपने पूरे परिवार को इस हादसे में खो चुका है तो सीएम ने न सिर्फ अभय को न सिर्फ गोद लेने बल्कि उसे इलाज के लिए एयरलिफ्ट कर दिल्ली ले जाने तक का आदेश दे दिया था. सोमवार को होश में रहे अभय ने एमपी की टीम के डॉक्टरों से बात भी की थी.
एमपी के डॉक्टरों की टीम ने 'आज तक' से खास बातचीत में बताया कि सुबह जब अभय को देखा तो लगा कि बच्चा ठीक हो जाएगा, लेकिन शाम को देखा तो बच्चा गंभीर था, बेहोश था और ऑक्सिजन लगा था. टीम के प्रमुख डॉ. आरपी पांडे अभय की मौत से इतने आहत हैं कि बोलते बोलते उनका गला रूंध गया. डॉ. पांडे बताते हैं कि कैसे डॉक्टरों की पूरी टीम लेकर भी वो लाचार बने रहे. अस्पताल के बाहर कुर्सी पर बैठे रहे. हैलेट अस्पताल ने उन्हें अभय को छुने नहीं दिया. इलाज बताने पर भी नहीं किया. डॉ. पांडे कहते हैं कि हमने प्रबंधन से कहा कि अगर उनसे नहीं संभल रहा तो हम इसे एयरलिफ्ट करा लेंगे क्योंकि सीएम साहब इसे गोद लेना चाहते है. इसके इलाज के खर्चे से लेकर इसका पढ़ाई तक का खर्चा उठाना चाहते है. देर रात को हमने अस्पताल से बच्चे का ट्रेक्सटॉमी करने को कहा ताकि थोडा संभल जाए तो इसे एयरलिफ्ट करा लें, लेकिन सुबह देखा तो बच्चा मर चुका था.
ट्रेक्सटॉमी करना था जो नहीं किया गया अगर किया जाता तो गले में नली डालकर उसकी सांस को ठीक किया जा सकता था. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री खूद उसका हाल ले रहे थे. एमपी के डॉक्टरों की टीम उस सर्जरी को भी करने को तैयार थी लेकिन उन्होंने न तो खुद किया न ही हमें करने दिया.