
नोटबंदी के बाद तमाम खातों में बड़ी रकम डिपॉजिट हो रही है। इनमें से कुछ तो घरों में जमा स्त्रीधन और दुख बीमारी या दूसरी जरूरतों के लिए घरों में जमा नगदी है परंतु बड़ी मात्रा में काली कमाई जमा हो रही है। काले कारोबारियों की गाड़ियां इन दिनों ग्रामीण इलाकों में दौड़ रहीं हैं। जिन आदिवासियों से बंधुआ मजदूर की तरह बर्ताव किया जाता था। जिन्हे तमाम तरह की शारीरिक एवं यौन प्रताड़नाएं दीं जातीं थीं। आज वही आदिवासी समाज काले कारोबारियों के लिए प्रिय हो गया है। लाखों के नोट लेकर गाड़ियां ग्रामीण इलाकों में आ रहीं हैं।
उन आदिवासियों की पूछपरख ज्यादा की जा रही है जिनके पास जनधन के अलावा दूसरे सेविंग अकाउंट भी हैं। बैंक खातों की शुद्ध दलाली चल रही है। 10 प्रतिशत तक दलाली दी जा रही है। हर आदिवासी को ढाई लाख रुपए थमाए जा रहे हैं जो उसे अपने बैंक अकाउंट में जमा करने हैं। लालच भी छोटा नहीं है, अत: ग्रामीण निर्धन लोग भी सहर्ष तैयार हो रहे हैं।
नोटबंदी के बाद मजदूरी के काम भी रुक गए हैं। एक बड़ा कारण है कि लोग अपने खातों की दलाली के लिए तैयार हो रहे हैं। इन सबके बीच शिवपुरी में एक सामाजिक संगठन 'सहरिया क्रांति' से जुड़े आदिवासियों ने संकल्प लिया है कि वो अपने बैंक खातों की दलाली नहीं होने देंगे। वो कालेधन के खिलाफ शुरू हुई मोदी की मुहिम में अपना पूरा योगदान देंगे, भले ही इसके लिए कुछ दिनों तक पेट पर पट्टी ही क्यों ना बांधना पड़े। बताते चलें कि 'सहरिया क्रांति' से जुड़े आदिवासी इससे पहले शराब ना पीने, अपने बच्चों को स्कूलों में शिक्षा दिलाने और पट्टे पर मिली जमीनों पर खुद खेती करने के संकल्प भी ले चुके हैं।