कलबुर्गी। कर्नाटक के कलबुर्गी जिले के आलंदा तहसील के गोला गांव में स्थित लकम्मा देवी का मंदिर आस्था और विश्वास का ऐसा केंद्र है, जहां देवी को खुश करने के लिए चप्पलों की माला पहनाई जाती है और मंदिर के सामने लगे नीम के पेड़ में मन्नत का चप्पल बांधा जाता है। इस मंदिर की विशेषता ये है कि इस मंदिर का पुजारी हिंदू नहीं बल्कि मुसलमान होता है।
दीपावली के बाद आने वाली पंचमी को इस मंदिर परिसर में विशेष मेला लगता है, जहां सीमावर्ती राज्यों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। इस दिन भक्त माता से मन्नत मांगते हुए नीम के पेड़ में चप्पल बांधते हैं और जिनकी मनोकामना पूर्ण हो गयी होती है वो देवी को चप्पलों की माला पहनाते हैं। ग्रामीण मानते हैं कि मेले की रात्रि को देवी मां नीम के पेड़ में बंधे मन्नत के चप्पल को पहनकर जाती हैं और अपने भक्तों की मुराद पूरी करती हैं।
लोग बताते हैं कि 12वीं सदी में ये देवी पहाड़ पर टहल रहीं थी, तभी दुत्तारा गांव के भगवान हिरन की नजर उन पर पड़ी तो उन्होंने उनका पीछा करना शुरू कर दिया और भगवान हिरन से बचने के लिए उन्होंने अपना सिर जमीन में धंसा लिया। देवी मां का मुंह जमीन में छिप जाने की वजह से देवी की पीठ की पूजा की जाती है।
हालांकि पहले यहां बैलों की बलि देने की परंपरा भी थी, जिसे गैरकानूनी मानते हुए समाप्त कर दिया गया था। जिसके बाद देवी क्रोधित हो गयी थी। फिर देवी को शांत करने के लिए एक ऋषि ने तपस्या कर देवी को शांत किया था और बलि के बदले चप्पल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
ग्रामीणों की मानें तो जिस समय बैलों की बलि दी जाती थी उस समय बलि की रात पूरे गांव में खून फैल जाता था। लेकिन अगली सुबह पूरी तरह साफ सुथरा दिखता था, जिसका राज जानने के लिए कुछ लोगों ने रात्रि के वक्त निगरानी की तो उनको अपनी जान तक गंवानी पड़ी और ये राज तो राज ही रह गया। देश का यह इकलौता मंदिर है, जहां देवी मां को चप्पल चढ़ाया जाता है, साथ ही पुजारी भी मुसलमान होता है।