भोपाल। पूरी तरह से बेकार का ठप हो चुके मध्यप्रदेश रोजगार बोर्ड की भूमिका बदल रही है। बेरोजगारों को नौकरियां दिलाने में नाकाम मध्यप्रदेश रोजगार बोर्ड के दफ्तर अब प्लेसमेंट एजेंसी की तरह काम करेंगे। राज्य सरकार अपने फेलियर को छुपाने के लिए इसे 'स्वामी विवेकानंद रोजगार योजना" का नाम दे रही है। महानगरों में यह काम विभिन्न एचआर ऐजेन्सियां करतीं हैं, जिन्हे ठेकेदार भी कहा जाता है।
मध्यप्रदेश रोजगार बोर्ड ने योजना का खाका तैयार कर लिया है और इसे कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेज दिया गया है। ये योजना प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप (पीपीपी मोड) पर चलाई जाएगी। हालांकि भोपाल नगर निगम इस तरह का प्रयोग कर चुकी है, जिसका परिणाम अपेक्षाकृत नहीं रहा।
ऐसे काम करेंगे रोजगार कार्यालय: पहला चरण
बेरोजगार और जिस एजेंसी या व्यक्ति को काम के लिए युवाओं की जरूरत है, वह टोल-फ्री नंबर पर फोन करके कॉल सेंटर में अपना पंजीयन कराएंगे। इसके लिए 300 से 500 रुपए शुल्क देना होगा। यह डाटा संबंधित जिले के रोजगार कार्यालय में पहुंच जाएगा। डाटा में बेरोजगार कौन सा रोजगार चाहता है और उसकी योग्यता क्या है, इसकी पूरी जानकारी होगी। हालांकि यह नंबर योजना लागू होने पर जारी होगा।
दूसरा चरण: बेरोजगार युवक की योग्यता के अनुसार काम मिलने पर रोजगार कार्यालय उससे संपर्क करेगा और ऐसे तीन से पांच युवाओं का पैनल तैयार कर जॉब देने वाली एजेंसी व अन्य जॉब देने वाले व्यक्ति के पास भेजा जाएगा। वे जिसका चयन करेंगे उसका पुलिस वेरीफिकेशन कराकर (किसी क्राइम में लिप्त न होने की पुष्टि होने पर) काम पर रख लिया जाएगा।
नौकरी से पहले ट्रेनिंग
जो बेरोजगार कॉल सेंटर में पंजीयन कराएंगे, उन्हें उनके कार्य में दक्ष किया जाएगा। इसके लिए कॉल सेंटर चलाने वाली एजेंसी की स्किल डेवलपमेंट सेल जिला रोजगार कार्यालय में रहेगी। वे उन्हें बॉडी लैंग्वेज से लेकर उठने-बैठने, बात करने का प्रशिक्षण देंगे। ताकि उनका परफार्मेंस अच्छा रहे।
सबसे ज्यादा मांग इनकी
ड्राइवर, मैकेनिक, प्लंबर, जच्चा-बच्चा की मालिश करने वाली बाई, माली, कारपेंटर, रिसेप्शनिस्ट, भृत्य, घर में झाड़ू-पोंछा करने वाले, सुरक्षा गार्ड, सफाईकर्मी, पुताई करने वाले आदि।
इन स्थानों पर सबसे ज्यादा मांग
ट्रांजेक्शन एडवाइजरी कंपनी ने रोजगार की संभावनाएं तलाशने के लिए प्रदेश का सर्वे किया है। कंपनी को मंडीदीप, देवास, पीथमपुर, इंदौर, भोपाल आदि में रोजगार के पर्याप्त अवसर मिले हैं।
कैबिनेट के पास योजना भेजी
योजना कैबिनेट की अनुमति के लिए भेजी गई है। अनुमति मिलते ही काम शुरू हो जाएगा। पूरी व्यवस्थाएं जुटाने में अधिकतम छह माह लगेंगे और एक साल में हम रोजगार देने की स्थिति में आ जाएंगे।
हेमंत देशमुख, अध्यक्ष, मप्र रोजगार बोर्ड
इनपुट: मनोज तिवारी, पत्रकार, भोपाल