सागर। राजनीति में महिला आरक्षण के बाद पति कल्चर सारे देश में देखा जा रहा है। सरपंच पति को तो जैसे संवैधानिक मान्यता ही प्राप्त हो गई है। मीटिंग में वो आते हैं, अफसरों से बात वो करते हैं, यहां तक कि झंडावंदन और शपथ ग्रहण भी वही करते हैं। सरपंच होने के बावजूद महिलाएं सिर्फ हस्ताक्षर ही करती रह जातीं हैं लेकिन अब बदलाव आ रहा है। एक महिला सरपंच ने अपने काम में अपने पति के दखल को नामंजूर कर दिया है। उसने राज्य महिला आयोग को शिकायत की है।
शिकायत में उसने लिखा है कि मेरे पति मुझसे कहते हैं। सरपंच बनने से कुछ नहीं होता। तुम्हारा काम घर संभालना है। रोटी बनाओ। रही बात, पंचायत के काम-काज की। तो उसके लिए मै हूं ना।
शिकायत में उसने बताया है कि पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज व्यवस्था के तहत मुझे सरपंच के नाते जो अधिकार प्राप्त हैं। उनका उपयोग मेरे पति करते हैं। पंचायत की मीटिंगों में वही जाते हैं। कभी तो वे घर के बाहर ताला डाल कर चले जाते हैं।
पति की दखलंदाजी से व्यथित इस सरपंच ने महिला आयोग की अध्यक्ष को दीदी संबोधित करते हुए बताया कि पंचायतराज में जो अधिकार मुझे दिए गए हैं उनके तहत मुझे मेरे पति कोई काम नहीं करने देते हैं। आपसे निवेदन हैं कि उन्हें पंचायत की मीटिंगों की अध्यक्षता करने और उनमें जाने से रोका जाए। उनकी उपस्थिति में खुद को मैं असहज महसूस करती हूं। क्योंकि मुझे वे फटकारते रहते हैं। जनपद पंचायत कार्यालय भी वह मेरे साथ जाते हैं। वहां मुझे हमेशा नीचा दिखाते हैं।
नाम गोपनीय रखने की अपील
खुरई क्षेत्र की पंचायत से करीब दो साल पहले सरपंच चुनी गई इस महिला ने आयोग की अध्यक्ष से निवेदन किया है कि मेरे संवैधानिक अधिकारों की हिफाजत करें, साथ ही इस पत्र के बारे में पूरी गोपनीयता रखें। अन्यथा मेरा पारिवारिक जीवन तबाह हो जाएगा। अंत में बस इतना आग्रह है कि पंचायत के कार्यों से पति को दूर रखने के निर्देश पंचायतीराज से जुडे़ अधिकारियों को दिए जाएं लेकिन इसमें मेरे नाम का जिक्र कहीं न हो।