राजू सुथार/खेल डेस्क। 15 नवंबर 1989 ये वो दिन है, जिसे हर क्रिकेट फैंस को याद है ये वो दिन है जब महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट में पर्दापण किया था 16 की उम्र वाले मुंबई के इस लड़के को तब कोई नहीं जानता था, जब इसने कराची में पाकिस्तान के खिलाफ अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय टेस्ट मैच खेला था लेकिन 27 साल बाद शायद मारिया शारापोवा को छोड़कर दुनिया का ऐसा कोई इंसान नहीं होगा, जो सचिन रमेश तेंदुलकर के बारे में न जानता हो हम सचिन के डेब्यू मैच को याद कर रहे हैं तो बता दें कि सचिन की पहली च्वॉइस बल्लेबाज बनना नहीं थी सचिन हमेशा से ही एक गेंदबाज बनना चाहते थे लेकिन ऑस्ट्रेलियाई लीजेंड डेनिस लिली ने उन्हें गेंदबाजी की बजाय बल्लेबाजी पर फोकस करने की सलाह दी, जिसके बाद सचिन के कैरियर की दशा-दिशा बदल गई। लेकिन क्या होता अगर डेनिस लिली ने सचिन को बल्लेबाज बनने सलाह ना दी होती, और क्या होता अगर सचिन गेंदबाज होते आइए जानते है कुछ ऐसे ही रोचक तथ्यों के बारे में ।
वो शायद प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेल रहे होते :-
अगर डेनिस लिली और सचिन के भाई अजित तेंदुलकर ना होते तो सचिन तेंदुलकर एक तेज गेंदबाज बनने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहे होते और हम उन्हें टेस्ट में नंबर 4 पर व वन-डे में सलामी बल्लेबाज के तौर पर नहीं देख पाते यहां तक कि हम उन्हें शायद भारतीय टीम की सफेद और नीली जर्सी में भी ना देख पाते क्योंकि अगर इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो पता चलता है कि जिस समय सचिन ने क्रिकेट में कदम रखा उस समय भारतीय क्रिकेट में वेंकटेश प्रसाद और जवागल श्रीनाथ जैसे दिग्गज गेदबाजों का उदय हो चुका था मतलब साफ है इन दोनों दिग्गज गेंदबाजों के बीच अपनी पहचान और जगह बनाने के लिए सचिन को काफी मेहनत करनी पड़ती ।
यहां तक कि सचिन सिर्फ प्रथम श्रेणी क्रिकेट तक ही सिमट कर रह जाते और उन्हें वो सफलता ना मिलती हां हम ये जरुर कह सकते हैं कि उन्होंने मुम्बई के लिए रणजी मैच खेलते हुए 11 रणजी ट्रॉफी मैच जीते, लेकिन फिर वो 2011 में भारत के लिए वर्ल्ड कप हाथ में ना उठा पाते।
शेन वॉर्न के सपने में नहीं आते :-
शेन वॉर्न के रूप में ऑस्ट्रेलिया ने दुनिया को एक दिग्गज स्पिनर दिया ,शेन वॉर्न ने 15 सालों तक अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खेला और वो दुनिया के दूसरे सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज है , टेस्ट क्रिकेट में शेन वॉर्न ने 708 विकेट लिए है ,
लेकिन बाकी क्रिकेटरों की तरह शेन वॉर्न की भी कुछ कमजोरियां थी दुर्भाग्य से उनकी ये कमजोरी दुनिया के सबसे महान बल्लेबाजों में से एक सचिन तेंदुलकर के रूप में थी, सचिन को गेंदबाजी करना शेन वॉर्न के लिए सबसे मुश्किल काम था, हर बार सचिन ने शेन वॉर्न की गेंदों पर जमकर रन बरसाए और वॉर्न को उन्हें आउट करने में काफी दिक्कत होती थी ,
लेकिन सचिन अगर बल्लेबाज ही नहीं होते तो क्या होता ? फिर शेन वॉर्न को शायद क्रिकेट में और सफलता मिलती और शायद वो क्रिकेट में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज होते , मुथैया मुरलीधरन को पीछे छोड़कर ।
राहुल द्रविड़ भारत के बेस्ट बैट्समैन होते :-
बेशक राहुल द्रविड़ केवल भारत के ही नहीं, बल्कि दुनिया के महान बल्लेबाजों में से एक हैं, लेकिन क्रिकेट के दोनों ही फॉर्मेट में 23000 से ज्यादा रन बनाने के बावजूद द्रविड़ को सचिन तेंदुलकर के कारण वो पहचान नहीं मिल पाई यूं ही नहीं द्रविड़ को भारत का संकटमोचक बल्लेबाज कहा जाता था, उन्होंने जहां भारत के मध्यक्रम की बल्लेबाजी को मजबूती प्रदान की तो वहीं कई मौकों पर अहम पारियां खेलकर टीम को जीत दिलाई है ।
2011 में इंग्लैंड के खिलाफ हुई सीरीज में द्रविड़ की शानदार बल्लेबाजी को सालों तक याद रखा जाएगा ,भारत ये सीरीज 4-0 से हार गया था, लेकिन द्रविड़ ने अपनी बल्लेबाजी से बता दिया कि क्यों उन्हें मिस्टर भरोसेमंद कहा जाता है , लेकिन क्या होता अगर सचिन गेंदबाज होते ? तो फिर बिना किसी शक के राहुल द्रविड़ भारत के सबसे बेस्ट बल्लेबाज होते और उन्हें वो मान-सम्मान मिलता जिसके लिए वो सही मायने में हकदार थे ।
शारजाह की वो तूफानी पारी ना देखने को मिलती-
सचिन के क्रिकेट कैरियर में कई ऐसे मौके आए है, जब टीम के अन्य बल्लेबाजों की मदद ना मिलने की वजह से उनका शतक बेकार चला गया और टीम को जीत नहीं मिली, ऐसा ही एक वाकया हुआ 1997-98 में शारजाह में खेले गए कोका-कोला कप के दौरान उस मैच में सचिन ने तूफानी 143 रन बनाए ,सचिन ने ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों की धज्जियां उड़ाते हुए मैदान के चारों तरफ गेंद को सीमा रेखा के पार पहुंचाया था खासकर शेन वॉर्न की उन्होंने जमकर कुटाई की ,लेकिन सचिन की इस शानदार पारी के बावजूद बाकी के बल्लेबाजों के फ्लॉप प्रदर्शन के कारण भारत ये मैच हारकर श्रृखंला से बाहर हो गया।