
मगर इन तीनों में सबसे ज्यादा प्रभावित रियल एस्टेट कारोबारी हुए हैं, क्योंकि उनके पास अपेक्षाकृत अधिक नगदी है। इन लोगों की मुश्किल यह भी होगी कि जब सरकार ने छिपे काले धन की घोषणा का विकल्प इन्हें दिया था, तब उन्होंने उसका उचित फायदा नहीं उठाया। अब अगर ये बैंक में जाते हैं, तो इनके खातों की जांच हो सकती है और फिर इन्हें अपेक्षाकृत अधिक आयकर देना पड़ेगा। सरकार के इस फैसले से वे लोग भी प्रभावित हुए है, जिन्होंने चोरी-छिपे या यूं ही अपने पास नगद पैसा जमा कर रखा है। ये अमूमन आम लोग हैं, जैसे कि घर के बड़े-बुजुर्ग, घरेलू कामगार, गांव-घरों की महिलाएं आदि। यह रकम आपात स्थिति से निपटने के लिए जमा की गई है। अस्पताल, इलाज, शादी विवाह और मौत सभी कुछ तो महंगा है भारत में।
इनकी समस्या का समाधान एक सवाल में छिपा है कि बैंक से लेन-देन करने की उनकी क्षमता कितनी है? क्या उनके पास कोई बैंक खाता है? या नोट बदलने के लिए ये लोग किस तरह की सुविधा उठा सकते हैं? यह ऐसी समस्या है, जिसका समाधान तुरंत निकाले जाने की जरूरत है। आजकल छोटी-मोटी जरूरतों के लिए घरों में 25-50 हजार रुपये रखना सामान्य बात है।
छोटे व्यापारी एक ऐसा सवाल यह है कि अब उनके पैसे का क्या होगा? चूंकि इन कारोबारियों का बैंक से लेन-देन होता नहीं या फिर काफी कम होता है, लिहाजा वहां पर उन्हें मुश्किलें आ रही हैं। इसका दूसरा पक्ष इन छोटे कारोबारियों से भी जुड़ा है कि वे या तो इन रुपयों को स्वीकार करें और उसे बैंक में जमा करें या फिर न लें ये तीसरा विकल्प इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे उनके कारोबार पर भी प्रतिकूल असर हो रहा है।
सरकार के जवाब अभी भी साफ नहीं हैं। क्या वाकई इससे काले धन का कारोबार खत्म हो जाएगा? काला धन भले ही आयकर से बचाता है, मगर इससे हमारी अर्थव्यवस्था भी चलती है; इससे उन सारे लोगों की नगद अब उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं, जिनके पास नकदी है। सरकार को अभी और स्पष्टीकरण देना चाहिए। देश हित में नागरिक हित में और चुनाव हिता में भी।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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