इतना कहते ही अंदर से एक छोटी बच्ची की आवाज गूंजी, "मैं अभी आ रही हूं, रुको।"
लेकिन 5 मिनट बाद भी कोई नहीं आया। डाकिये ने फिर कहा, “क्या कोई है आपका पत्र लेने वाला? मुझे और भी कई जगहों पर जाना है।”
लड़की ने उत्तर दिया, “अंकल, यदि आप जल्दी में हैं तो पत्र दरवाजे के नीचे रख दीजिये। मैं आ रही हूं इसमें थोड़ा समय और लगेगा।”
बूढ़े डाकिये ने उत्तर दिया, “नहीं, मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ। यह एक पंजीकृत पत्र है। इसलिए किसी के हस्ताक्षर की भी जरूरत है।”
करीब 10 मिनट बाद दरवाजा खुला।
डाकिया देरी के कारण गुस्से में था, वह लड़की पर चिल्लाने ही वाला था लेकिन जैसे ही दरवाजा खुला, वह यह देखकर चौंक गया कि उसके सामने एक छोटी सी विकलांग लड़की थी जिसके पैर नहीं थे।
डाकिये ने चुपचाप पत्र दिया और उसके हस्ताक्षर लेकर चला गया।
छोटी बच्ची अक्सर अपने घर में अकेली रहती थी। उनकी मां इस दुनिया में नहीं थीं और पिता दूर रहकर नौकरी करते थे। लड़की की देखभाल के लिए एक नौकरानी सुबह और शाम को उसके साथ घर में रहती थी लेकिन दिन में वह अपने घर में अकेली रहती थी।
एक-दो महीने में जब भी डाक आती, डाकिया दस्तक देकर लड़की को बुलाता और फिर दरवाजे पर धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करता। धीरे-धीरे उनके बीच मेल-जोल और लगाव बढ़ता गया।
छोटी लड़की ने देखा कि डाकिया डाक देने के लिए नंगे पैर आता था।
बरसात का मौसम आया। एक दिन जब डाकिया लड़की को पत्र देकर चला गया तो उसके पैरों के निशान गीली मिट्टी पर रह गए। लड़की एक कागज़ लेकर बाहर आई और उसे प्रिंट करके उसके पैरों की तस्वीर खींच ली। अगले दिन, उसने उससे उस आकार के जूते लाने और उन्हें घर में रखने के लिए कहा।
दिवाली आने से पहले डाकिया उन घरों में दिवाली का उपहार मांगने जाता था जहां वह डाक पहुंचाता था, लेकिन जब उसे छोटी बच्ची का ख्याल आया तो वह सोचने लगा कि उससे कुछ भी मांगना ठीक नहीं होगा। वह यह भी सोचने लगा कि त्योहारों के समय लड़कियों से खाली हाथ नहीं मिलना चाहिए।
बहुत सोचने के बाद उसने छोटी बच्ची के लिए एक छोटी सी चॉकलेट खरीदी। अगले दिन वह बच्ची के घर गया और दस्तक दी।
जब लड़की ने दरवाज़ा खोला तो बूढ़े डाकिया ने उसे चॉकलेट देते हुए कहा, “अपने चाचा की तरफ से यह छोटा-सा उपहार ले लो।”
लड़की उसे पाकर बहुत खुश हुई और उसने डाकिए से कुछ देर इंतजार करने को कहा।
थोड़ी देर बाद उसने एक बड़ा बक्सा खरीदा और उसे डाकिये को देते हुए बोली, “अंकल, यह दिवाली पर मेरी तरफ से आपको एक उपहार है।”
डाकिया डिब्बा देखकर आश्चर्यचकित रह गया। कुछ देर सोचने के बाद उन्होंने कहा, “तुम मेरे लिए बेटी की तरह हो, मैं तुमसे उपहार कैसे स्वीकार कर सकता हूँ?”
छोटी लड़की ने जिद्द करते हुए कहा, “अंकल प्लीज़ मेरा गिफ्ट मत मना करो। मैं उदास हो जाऊंगी।"
“ठीक है” कहते हुए बूढ़े ने डिब्बा रख दिया और लड़की के सिर पर प्यार से हाथ फेरा जैसे उसे आशीर्वाद दे रहा हो।
घर जाकर जब डाकिया ने बक्सा खोला तो यह देखकर हैरान रह गया कि उसमें एक जोड़ी जूते थे। उसकी आँखें चमक उठीं। डाकिया को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वह छोटी लड़की उसके बारे में इतनी चिंतित थी।
अगले दिन, डाकिया अपने डाकघर पहुंचा और पोस्टमास्टर अरुण से प्रार्थना की कि उसे तुरंत दूसरे क्षेत्र में स्थानांतरित कर दिया जाए।
जब पोस्टमास्टर ने कारण पूछा तो उसने उन्हें सारी बात बताई और नम आँखों से कहा, “सर, आज के बाद मैं उस गली में नहीं जा पाऊँगा। उस छोटी लड़की ने मुझे नंगे पैर देखा और मुझे जूते दिए लेकिन मैं उसे पैर कैसे दे पाऊंगा?” कहते हुए डाकिया फूट-फूटकर रोने लगा।
शिक्षा:- दूसरों का दर्द महसूस करना और उनकी पीड़ा को समझना एक ऐसा मानवीय गुण है जिसके बिना इंसान अधूरा है। हमें ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें संवेदनशीलता का बहुमूल्य आभूषण प्रदान करें ताकि हम दूसरों के कष्टों को कम करने में अपनी भूमिका निभा सकें। 🌷🌷🙏🚩
सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।