
प्रदेश में प्राइवेट स्कूलों की मोनोपाली से परेशान अभिभावक लगातार एनसीईआरटी के सिलेबस की मांग करते रहे हैं। पिछले तीन साल से सरकार भी किताबों को लेकर निजी स्कूलों की मोनोपाली खत्म करने का दावा कर रही है। जनता को उम्मीद थी कि सरकार प्रदेश में चल रहे सभी स्कूलों के लिए समान व्यवस्था बनाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। स्कूल शिक्षा विभाग के अफसर बताते हैं कि ये किताबें सिर्फ सरकारी स्कूलों में चलेंगी। अब अगले साल शिक्षण सत्र के लिए एनसीईआरटी सिलेबस के आधार पर सिर्फ मुफ्त में बंटने वाली किताबें ही छपेंगी।
आरएसके-माशिमं के स्कूलों को भी राहत
सरकार ने सीबीएसई से संबद्ध स्कूल तो छोड़िए राज्य शिक्षा केंद्र (आरएसके) और मप्र माध्यमिक शिक्षा मंडल (माशिमं) से संबद्ध प्राइवेट स्कूलों को भी इस व्यवस्था से बाहर रखा है। यानी इन संस्थाओं से जुड़े सरकारी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें चलेंगी, जबकि प्राइवेट स्कूल निजी पब्लिशर्स की किताबें चलाने के लिए स्वतंत्र होंगे। सरकार ने इस व्यवस्था से सीबीएसई स्कूलों को दूर रखा है। जबकि असल समस्या ये स्कूल ही हैं।
प्रस्ताव में भी स्पष्ट नहीं
स्कूल शिक्षा विभाग की ओर से कैबिनेट को भेजे गए प्रस्ताव में भी अफसरों ने यह स्पष्ट नहीं किया कि एनसीईआरटी का सिलेबस किन स्कूलों में चलेगा और किन स्कूलों में नहीं चलेगा।
इसलिए हो रही थी मांग
प्रदेश में लगभग 45 हजार प्राइवेट स्कूल हैं। सभी प्री-नर्सरी से आठवीं तक प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें चलाते हैं। ये स्कूल हर साल किताबें बदल देते हैं। इसका सीधा असर अभिभावकों की जेब पर पड़ता है, क्योंकि किताबें बदलते ही कोर्स के दाम 200 से 800 रुपए तक बढ़ जाते हैं। पिछले पांच साल से अभिभावक निजी स्कूलों की इस मोनोपाली के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं।
नियम विरुद्ध कदम
सरकार का यह कदम नियम विरुद्ध है। एक बोर्ड में दो तरह की व्यवस्था नहीं की जा सकती। ऐसा करके बच्चों और अभिभावकों के साथ अन्याय किया जा रहा है।
शरदचंद्र बेहार, पूर्व मुख्य सचिव