प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण की राजनीति शुरू, कर्नाटक में 100% आरक्षण

Bhopal Samachar
नई दिल्ली। वोट की राजनीति अब सरकारी ही नहीं प्राइवेट सेक्टर को भी सीधे प्रभावित कर रही है। भाषा के नाम पर आरक्षण की वकालत तो कई राज्यों में होती आई है। महाराष्ट्र में मराठी के नाम पर हिंसा तक हो जाती है लेकिन कर्नाटक देश का पहला राज्य है जहां भाषा के नाम पर प्राइवेट सेक्टर में 100% आरक्षण का कानून बना दिया गया है। इससे प्राइवेट सेक्टर को क्या असर पड़ेगा। देश भर से क्या प्रतिक्रियाएं आएंगी इन सबसे बेखबर सिद्धारमैया सरकार अपने कन्नड़ वोट पक्के करने पर तुली हुई है। 

कर्नाटक राज्य के लेबर विभाग ने इंडस्ट्रियल रोजगार कानून 1961 में इस आरक्षण को देने के लिए जरूरी संशोधन का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है। इस ड्राफ्ट के मुताबिक राज्य की कन्नड़ भाषी आबादी को राज्य की सभी प्राइवेट कंपनियों में 100 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा। हालांकि ड्राफ्ट कानून के मुताबिक इंफोटेक और बायोटेक सेक्टर की निजी कंपनियों को इस कानून के दायरे से बाहर रखा जाएगा।

किन-किन को मिलेगा इस आरक्षण का लाभ
राज्य सरकार के मुताबिक क्षेत्रीय डोमिसाइल वाले वो सभी लोग जो पिछले 15 साल से राज्य के निवासी हैं और जिन्हें कन्नड़ भाषा पढ़ना, बोलना और लिखना आता हो वे इस आरक्षण की पात्रता रखते हैं।

निजी कंपनियों के लिए शर्त
राज्य सरकार के प्रस्तावित संशोधन में राज्य में स्थित निजी कंपनियों के लिए कड़े प्रावधान किए गए हैं। यदि कोई कंपनी कन्नड़ भाषी लोगों के लिए शत-प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान नहीं करती है तो उसे राज्य में कारोबार करने के लिए मिली सभी छूट समाप्त हो जाएंगी। सरकार के प्रस्तावित कानून के मुताबिक प्राइवेट कंपनियों को अपने ग्रुप सी और ग्रुप डी की नौकरियों के लिए पहली प्राथमिकता राज्य के लोगों को देनी होगी। वहीं थोड़ी राहत देते हुए यह भी कहा गया है कि यदि कोई कंपनी ग्रुप ए और ग्रुप बी(व्हाइट कॉलर) नौकरी में कन्नड़ भाषी लोगों को रखती है तो उसके लिए चारों ग्रुप को मिलाकर 70 फीसदी नौकरी कन्नड़ भाषी लोगों को देने का प्रावधान है।

IT और बायोटेक क्षेत्र को रियायत
प्रदेश सरकार का प्रस्तावित कानून राज्य में स्थित इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी और बायोटेक्नोलॉजी क्षेत्र की कंपनियों को इस नियम से बाहर रख रहा है. ऐसा इसलिए कि राज्य के रोजगार कानून में ये क्षेत्र नहीं आते और इन्हें केन्द्र सरकार द्वारा संचालित किया जाता है. इस क्षेत्र में रोजगार के लिए राज्य सरकार को 2014 से 2019 तक कोई प्रावधान करने का अधिकार नहीं है. हालांकि राज्य सरकार के लेबर मंत्रालय का मानना है कि भविष्य में इन क्षेत्रों के लिए भी ऐसा प्रावधान कर दिया जाएगा.

राज्य सरकार का यह संशोधन प्रस्ताव फिलहाल राज्य के कानून मंत्रालय के पास दूसरी बार अप्रूवल के लिए भेजा गया है. कानून मंत्रालय से अप्रूवल मिलते ही इसे तत्काल प्रभाव से लागू करने की कोशिश की जा रही है.

गौरतलब है कि कर्नाटक में बड़ी संख्या में उत्तर भारतीय राज्यों से स्किल्ड और अनस्किल्ड लेबर मौजूद है। इस कानून के बाद जहां इन लोगों को राज्य छोड़ने पर मजबूर होना पड़ेगा, वहीं राज्य की कंपनियों को सस्ते लेबर मिलना बंद हो जाएंगे। इस कानून के तहत उन्हें ऊंचे दरों पर कन्नड़ भाषी कर्मचारियों को नौकरी देना होगा जिससे उनके मुनाफे पर बड़ा असर पड़ेगा।

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