भोपाल। नोटबंदी के बाद पेट्रोप पंपों पर बंद हो चुके नोट चल रहे थे। मप्र में 20 हजार बसें हैं, इन्होने इस अवधि में 250 करोड़ रुपए का डीजल खरीदा। सारा का सारा 500 और 1000 के नोटों में। सवाल यह है कि इन्होंने किराया तो 100 या 50 के नोटों में लिया था। डीजल भराने के लिए बंद हुए नोट ही क्यों निकले। कहीं काली कमाई को एक्सचेंज तो नहीं किया गया। पढ़िए इस मामले की पड़ताल करती भोपाल के पत्रकार धनंजय प्रताप सिंह की यह रिपोर्ट:
बस आपरेटरों ने 264 करोड़ रुपए से ज्यादा का डीजल डलवाया
प्रदेश में छोटी-बड़ी लगभग 20 हजार से ज्यादा बसें दौड़ रही हैं, जो रोजाना 300 से 400 किलोमीटर का सफर करती हैं। इस दौरान प्रतिदिन बसों में औसतन 100 लीटर से ज्यादा डीजल का उपयोग होता है। पूरे प्रदेश में देखा जाए तो बसों में लगभग 20 लाख लीटर डीजल की खपत होती है। इसकी कीमत रोजाना 12 करोड़ से ज्यादा होती है। नोटबंदी के बाद से अब तक 22 दिनों में देखा जाए तो बस आपरेटरों ने 264 करोड़ रुपए से ज्यादा का डीजल डलवाया है। पेट्रोल पंप व्यवसायी भी मानते हैं कि ज्यादातर बस आपरेटर डीजल के बिल 500 रुपए में ही चुका रहे हैं। इस पर कोई रोक-टोक भी नहीं है।
इधर ट्रक आपरेटर संकट में
नोटबंदी के बाद 1000 और 500 के रुपए नोट पेट्रोल पंप में चलाने की अनुमति देने का मकसद मूल रूप से लंबी दूरी के ट्रक चालकों को राहत प्रदान करना था, लेकिन हुआ इसका उल्टा। प्रांतीय ट्रांसपोर्ट वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष कमल पंजवाणी कहते हैं कि इन दिनों ट्रक आपरेटर का व्यवसाय पूरी तरह से ठप पड़ गया है। मार्केट में न तो काम मिल रहा है और न ही करेंसी। जिन राज्यों में ऑनलाइन टैक्स जमा नहीं होता है वहां टैक्स जमा नहीं करा पा रहे हैं।
काले धन का इस्तेमाल
जब भाड़ा नई करेंसी में वसूला जा रहा है तो हो सकता है कि काले धन को डीजल में इस्तेमाल किया जा रहा हो।
अजयसिंह बिसारिया, अध्यक्ष, मप्र पेट्रोल पंप आनर्स एसोसिएशन
बात तो यही है लेकिन...
ये बात सही है कि हम नई करेंसी में किराया वसूल रहे हैं, लेकिन पेट्रोल-डीजल भराने के जो पुराने पांच सौ के नोट दे रहे हैं, वो हमारी मेहनत की कमाई है।
गोविंद शर्मा, अध्यक्ष, प्राइम रूट बस आनर्स एसोसिएशन