भोपाल। मप्र में बीआरसीसी कार्यालय स्तर पर 2208 अकाउंटेंट्स की भर्ती के लिए परीक्षा कराई गई थी। प्रक्रिया पूरी हुई। रिजल्ट आए। नौकरी के लिए चयन भी हुआ लेकिन पोस्टिंग नहीं दी जा रही है। सरकार का कहना है कि अभी तक केंद्र से अनुदान नहीं आया है, इसलिए पोस्टिंग नहीं दी जा सकती। इस प्रक्रिया में परीक्षा फीस के नाम पर प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड (पीईबी) को 2 करोड़ 19 लाख रुपए की आय हुई है।
सरकार ने लेखापालों की भर्ती प्रक्रिया जल्दबाजी में पूरी की। 3 फरवरी-14 को तत्कालीन मुख्य सचिव की अध्यक्षता में मप्र सर्वशिक्षा मिशन की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में विकास खंड स्रोत समन्वयक (बीआरसीसी) स्तर पर भर्ती का निर्णय हुआ। पीईबी को मार्च-15 से पहले चयन परीक्षा कराने को कहा। ये पद बाद में बढ़कर 2208 हो गए। पीईबी ने 5 अप्रैल-15 को परीक्षा करा ली। जिसका परिणाम 8 जुलाई-15 को जारी हुआ।
ओवरएज हो गए अभ्यर्थी
चयन प्रक्रिया के समय हर मापदंड पर खरे उतरने वाले सैकड़ों अभ्यर्थी अब ओवर एज हो गए हैं। इनको अब न तो नौकरी मिलने की उम्मीद है और न ही पैसा वापस होने की। जबकि सामान्य प्रशासन विभाग ने परीक्षा परिणाम घोषित होने से 3 माह के अंदर नियुक्ति करने को कहा था।
केंद्र के अनुदान का इंतजार
स्कूल शिक्षा विभाग के अफसरों का कहना है कि लेखापालों की भर्ती के लिए अब केंद्र से मिलने वाले अनुदान का इंतजार है। वे बताते हैं कि ये पद राज्य शिक्षा सेवा के तहत स्वीकृत किए गए हैं। 2016-17 में लेखापाल के पदपूर्ति के लिए बजट मिल सकता है।
इतने अभ्यर्थी शामिल
इस परीक्षा में 38,684 अभ्यर्थी शामिल हुए थे। इनमें अनारक्षित वर्ग के 15,020, अजा के 5,443, अजजा 2,468 और पिछड़ा वर्ग के 15,753 अभ्यर्थी थे। परीक्षा के लिए अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थी को 770 रुपए और आरक्षित वर्ग को 420 रुपए फीस चुकानी पड़ी। इस हिसाब से 2 करोड़ 19 लाख 24 हजार 280 रुपए पीईबी को मिल गए।
मामला हाईकोर्ट में ले जाने की तैयारी
आरटीआई एक्टिविस्ट रमाकांत पाण्डेय ने भर्ती प्रक्रिया में फर्जीवाड़े का आरोप लगाया है। उन्होंने सर्वशिक्षा अभियान की उस बैठक में शामिल तत्कालीन मुख्य सचिव सहित 19 अफसरों को पत्र भेजकर नौकरी दिलाने की पहल करने की मांग की है। साथ ही कहा है कि चयनित अभ्यर्थियों को नौकरी नहीं दी गई तो इन सभी के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर करेंगे। पाण्डेय ने बताया कि बैठक में कुछ निर्णय लिया गया। बाद में पद बढ़ गए और अब नौकरी देने को तैयार नहीं हैं।