भोपाल। व्यवस्थाओं के खिलाफ आ रहीं शिकायतों और नाम गोपनीय रखते हुए घोटालों का खुलासा रोकने के लिए शिवराज सरकार ने नई चाल चली है। अब जनसुनवाई और सीएम हेल्पलाइन में शिकायत के लिए आधार अनिवार्य कर दिया है। सरकार के इस कदम का तीखा विरोध सामने आ रहा है। लोगों का कहना है कि अब क्या एक्सीडेंट में इलाज और एफआईआर के लिए भी आधार अनिवार्य किया जाएगा। यदि नंबर याद ना हुआ तो क्या तड़पता छोड़ दिया जाएगा। क्या नागरिक के संवैधानिक अधिकारों के लिए भी आधार अनिवार्य किया जाएगा।
जनसुनवाई और सीएम हेल्पलाइन जैसी सेवाओं पर अब आप बिना आधार नंबर के शिकायत नहीं कर सकते हैं। लोगों का कहना है कि प्रशासन में बैठे अफसर शिकायतें कम करने के लिए जबरन शिकायती फोरमों में भी आधार लागू कर लोगों के शिकायत करने के अधिकार में कटौती कर रहे है।
जनसुनवाई
आम आदमी के लिए शासन-प्रशासन तक अपनी समस्या पहुुंचाने का सबसे सरल माध्यम जनसुनवाई में आधार नंबर दर्ज करना अनिवार्य कर दिया गया है। 14 दिसंबर को इसके आदेश कलेक्टर ने जारी किए थे। इस आदेश के बाद मंगलवार को पहली जनसुनवाई होगी। कलेक्ट्रेट में हर मंगलवार औसतन 150 से 200 शिकायती आवेदन आते हैं।
सीएम हेल्पलाइन
शिकायतकर्ता की सुरक्षा और गोपनीयता को ध्यान में रखते हुए शुरू की गई सीएम हेल्पलाइन सेवा में भी आधार नंबर लागू कर दिया गया है। 1 दिसंबर से 181 पर कॉल करने वाले हर शिकायतकर्ता से आधार नंबर मांगा जा रहा है। यदि आधार नंबर नहीं हैं तो आपकी शिकायत सुन तो ली जाएगी, लेकिन जब तक आधार नंबर नहीं दर्ज कराया जाएगा, तब तक आपकी शिकायत रिकार्ड पर नहीं ली जाएगी।
खसरा-खतौनी, नामांतरण
खसरा रिकार्ड में भी आधार दर्ज करना अनिवार्य कर दिया गया है। इसका उद्देश्य बेनामी संपत्तियों को चिन्हित करना और एक ही संपत्ति को एक से अधिक बार फर्जी तरीके से बेंचने के मामलों को रोकना बताया जा रहा है। 16 दिसंबर से खसरा-खतौनी की नकल निकाले के आवेदनों में भी आधार नंबर को अनिवार्य कर दिया गया है। लेकिन इससे ग्रामीण गरीब किसानों की मुश्किल बढ़ गई है।
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शासन के तर्क या बहानेबाजी
इससे आधार पंजीयन 100 फीसदी करने के लिए लोग प्रोत्साहित होंगे।
शिकायतकर्ता की पहचान सुनिश्चित होगी, जिससे फर्जी शिकायतें रुकेंगीं।
आदतन बार-बार शिकायत करने वाले चिन्हिंत होंगे।
पर्दे के पीछे की कहानी
सरकारी विभागों से लोग हलाकार होते जा रहे हैं। शिकायतों का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। निराकरण की स्पीड बहुत कम है। आंकड़ा अब समस्या बनता जा रहा है। शिकायत दर्ज कराने के बाद निराकरण नहीं होते तो आम आदमी झल्लाता है और स्वभाविक रूप से वह सरकार विरोधी हो जाता है। चुनाव पास आ गए हैं। शिवराज सिंह बवाल नहीं चाहते। हर स्तर पर निगेटिव होती इमेज को रोकना चाहते हैं। अत: आधार नंबर की शर्त लगाकर शिकायतों को कम करने की कोशिश की जा रही है। ज्यादातर लोग अज्ञात नामों से ऐसे खुलासे करते हैं जो अक्सर धमाकेदार होते हैं। आधार की शर्त लगाने से इस तरह के सभी खुलासे बंद हो जाएंगे।
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यदि किसी व्यक्ति की समस्या गंभीर है तो जरूर सुनी जाएगी, गंभीर मामले में तो कभी भी जनसुनवाई के अलावा भी हम लोग ध्यान देते हैं। लेकिन जनसुनवाई में आधार नंबर के सिस्टम को तो फॉलो करना ही होगा।
निशांत वरवड़े, कलेक्टर
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हम यह मानकर चल रहे हैं, कि भोपाल में अब 100 फीसदी लोगों के पास आधार है लेकिन यदि कोई बिना आधार वाला व्यक्ति जनसुनवाई में आता है तो कलेक्ट्रेट में ही ई-गर्वर्नेंस शाखा के कार्यालय में पहले उनका आधार रजिस्ट्रेशन कराया जाएगा, इसके बाद रजिस्ट्रेशन नंबर को आधार नंबर के स्थान पर मान्य कर जनसुुनवाई में उसकी शिकायत दर्ज कर ली जाएगी।
अतुल सिंह, डिप्टी कलेक्टर व प्रभारी ई-गवर्नेंस
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यह अलोकतांत्रिक और गैरवाजिब है। सरकार शिकायत करने की प्रक्रिया को जानबूझकर जटिल बना रही है, ताकि जनता की शिकायतों का ग्राफ कम किया जा सके। आखिर आम आदमी किसी न किसी सरकारी विभाग से ही परेशान होकर तो जनसुनवाई या सीएम हेल्पलाइन में शिकायत करने आता है।
अजय दुबे, आरटीआई एक्टिविस्ट
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जब सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट में न्याय मांगने के लिए आधार की जरूरत नहीं हैं, तो जनसुनवाई और सीएम हेल्पलाइन में न्याय मांगने पर आधार क्यों लगना चाहिए? यह जनता की परेशानियों को उजागर होने से रोकने की साजिश है।
पारस सखलेचा, पूर्व विधायक
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शासन-प्रशासन अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए शिकायतों की संख्या को कम करने के लिए ऐसे हथकंडे अपना रहा है। यह सुशासन को मारने की साजिश है। यदि वाकई सुशासन होता तो शिकायतें आती ही नहीं, लेकिन शिकायतें ज्यादा आ रही हैं, इसलिए उन्हें कम करने के लिए आधार को हथियार बनाया जा रहा है।
प्रशांत दुबे, आरटीआई एक्टिविस्ट