पढ़िए क्यों जल रहा है मणिपुर, क्या कश्मीर बनने के बाद ही ध्यान देंगे

Bhopal Samachar
नईदिल्ली। मणिपुर में रविवार को हुई हिंसा के बाद वहां कर्फ़्यू लगा दिया गया जो कि अब भी जारी है। इंटरनेट पर भी पाबंदी लगा दी गई है। कुछ जगहों पर सिर्फ़ रात का कर्फ़्यू है और कुछ जगहों पर 24 घंटे का कर्फ़्यू है। मणिपुर के मेतई समुदाय के लोग बहुत संवेदनशील हैं. उन्होंने नागा समुदाय के लोगों की गाड़ियां जला दीं लेकिन किसी को हाथ नहीं लगाया, किसी को मारा नहीं. मेतई लोग जानते हैं कि हिंसा करने से ये पूरा मामला सांप्रदायिक रंग ले सकता है।

नागा चरमपंथी संगठन एनएससीएन(आई-एम) गुट के लोगों ने फ़ायरिंग की थी जिसमें कुछ ट्रक ड्राइवर घायल हो गए थे। लोगों में इसको लेकर भी ग़ुस्सा था लेकिन असल नाराज़गी की वजह थी नागा लोगों की पिछले एक-डेढ़ महीने से लागू की गई आर्थिक नाकेबंदी जिससे इंफ़ाल घाटी में लोगों की परेशानी बहुत बढ़ गई।

घाटी में पेट्रोल 350 रुपए लीटर मिल रहा है, गैस का एक सिलिंडर 2000 रुपए में मिल रहा है, आलू 100 रुपए किलो और प्याज़ 50 रुपए किलो मिल रहा है। इसकी वजह से लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी बहुत मुश्किल हो गई है।

किसी को मणिपुर की चिंता नहीं है
जब नवंबर में नागा लोगों ने इंफ़ाल घाटी की आर्थिक नाकेबंदी शुरू की तो सरकार ख़ामोश रही। सरकार की ज़िम्मेदारी थी कि वो नागा लोगों से बात करके आर्थिक नाकेबंदी को ख़त्म करवाती। दरअसल ताज़ा समस्या तब शुरू हुई जब मणिपुर की सरकार ने सात नए ज़िलों को बनाने की घोषणा की। 

नागा समुदाय और नागा संगठनों ने ये कहते हुए इसका विरोध किया कि वो ऐतिहासिक तौर पर नागा इलाक़े हैं और उनके प्रस्तावित ग्रेटर नागालिम का हिस्सा हैं। वैसे नए ज़िले बनाने का अधिकार तो राज्य सरकार के पास है उसे चुनौती नहीं दी जा सकती है। लेकिन मुख्यमंत्री इबोबी सिंह को जब कड़े क़दम उठाने चाहिए तब वे चुप रहते हैं। 

आगे हालात और ख़राब हो सकते हैं क्योंकि नागा लोग भी बदले की कार्रवाई कर सकते हैं और ऐसी भी ख़बर है कि नागा बहुल सेनापति ज़िले में कुछ छिटपुट घटनाएं हुई हैं। मणिपुर में अगले साल फ़रवरी में विधानसभा चुनाव हैं और सरकार ने इसको नज़र में रखते हुए ही सात ज़िले बनाने का फ़ैसला किया है। इबोबी सिंह सरकार को इसका चुनावी लाभ मिल सकता है।

इस मामले में केंद्र सरकार का भी रोल अच्छा नहीं रहा है। मौजूदा समस्या के लिए एनएससीएन के लोग ज़िम्मेदार हैं और एनएससीएन सीधे तौर पर केंद्र सरकार से संपर्क में रहती है। उनके बीच 1996 से ही संधि बनी हुई है। केंद्र सरकार चाहे तो वो एनएससीएन को कह सकती है कि वो अपने कार्यकर्ताओं को निर्देश दें और नाकेबंदी को बंद करें, ताकि घाटी के लोगों को कुछ राहत मिले लेकिन केंद्र सरकार ऐसा नहीं कर रही है।
(बीबीसी संवाददाता इक़बाल अहमद से बातचीत पर आधारित)

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