इलाहाबाद। हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी सरकारी सेवा में नियोजित व्यक्ति को मात्र इस आधार पर सेवा से निकालना अनुचित है कि उसके खिलाफ क्रिमिनल केस था, जिसकी जानकारी उसने नियुक्ति के समय जानबूझकर छिपाई थी या किसी वजह से नहीं बता सका था।
कोर्ट ने रेलवे प्रोटेक्टशन फोर्स (आरपीएफ) में भर्ती ऐसे दर्जनों जवानों की याचिकाओं पर अलग-अलग निर्णय देते हुए बर्खास्तगी आदेश रद्द कर दिया है। रेलवे को यह छूट दी है कि वह हर मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए नए सिरे से आदेश पारित कर सकते हैं।
विनोद निषाद और अन्य तमाम आरपीएफ कांस्टेबलों की याचिका पर न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिरला ने सुनवाई की। याची के अधिवक्ता विजय गौतम ने बताया कि आरएएफ में 17087 पदों पर कांस्टेबलों की भर्ती के लिए 23 फरवरी 2011 को विज्ञापन जारी किया गया। भर्ती चीफ सिक्योरिटी कमिश्नर गोरखपुर द्वारा की गई।
याचीगण सभी परीक्षाओं और औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद अंतिम रूप से चयनित हुए और देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रशिक्षण के लिए भेज दिए गए। प्रशिक्षण के दौरान चीफ सिक्योरिटी कमिश्नर कार्यालय को जानकारी मिली कि चयनित अभ्यर्थियों में कई ऐसे हैं जिनके खिलाफ आपराधिक मुकदमे थे या लंबित हैं, मगर उन्होंने इसकी जानकारी आवेदन करते समय नहीं दी। ऐसे दर्जनों अभ्यर्थियों को 19 जून 2015 को रेलवे बोर्ड ने सेवा से निकाल दिया।
इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई
अधिवक्ता का कहना था कि याची मुकदमे में बरी हो चुका है, इसलिए उसने जानकारी नहीं दी। ऐसे ही कुछ अन्य याचियों के खिलाफ मुकदमे बेहद मामूली थे या कई मामलों में वह बरी हो चुके थे। कहा गया कि सेवा से बर्खास्त करने के आदेश में इस बात का कोई ब्यौरा नहीं दिया गया है कि उनको किस मुकदमे के लिए कौन से आधार पर निकाला जा रहा है। बर्खास्तगी का निर्णय लेते समय प्रत्येक याची के केस के तथ्यों और परिस्थितियों पर अलग-अलग विचार करके विस्तृत आदेश पारित होना चाहिए था।
हाईकोर्ट ने सुप्रीमकोर्ट द्वारा अवतार सिंह केस में दी गई गाइड लाइन का पालन करने का निर्देश देते हुए बर्खास्तगी आदेश रद्द कर दिया। अधिवक्ता विजय गौतम के मुताबिक लगभग 45 याचियों के मामले में हाईकोर्ट ने ऐसा ही आदेश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया है गहन विचार का निर्देश
अवतार सिंह केस में सुप्रीम कोर्ट ने दस बिंदुओं पर गाइड लाइन तय करते हुए सभी नियोक्ता विभागों को निर्देश दिया है कि आपराधिक मुकदमे की जानकारी छिपाना गंभीर मामला है किंतु नियोक्ता जानकारी छिपाने या मुकदमा दर्ज होने के आधार पर बर्खास्तगी का निर्णय लेने से पूर्व प्रत्येक केस के कारण, परिस्थितियों और तथ्यों पर गंभीरता पूर्वक विचार करने के बाद ही आदेश पारित करेंगे। युवावस्था में नारे लगाने का अपराध इस जैसे बेहद मामूली अपराधों की स्थिति में कर्मचारी को बर्खास्त करना जरूरी नहीं है।