
न्यायिक दंडाधिकारी आरोपी और अभियोजन की दलील सुनने के बाद ही न्यायिक हिरासत में भेजने पर निर्णय लेगा। इसके लिए राज्य के न्यायालयों में 162 वकील नियुक्त किए जा रहे हैं। ऐसे वकीलों को हर माह पांच हजार का मानदेय मिलेगा, जिनको रिमांड एडवोकेट का नाम दिया गया है।
कई जिलों में नियुक्त हुए रिमांड एडवोकेट
हाईकोर्ट के आदेश के बाद कई जिले में रिमांड एडवोकेट नियुक्त कर दिए गए हैं। झालसा (झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकार) ने भी इसका पैनल तैयार किया है। जब भी आरोपी की पेशी कोर्ट में होती है, इसकी सूचना रिमांड एडवोकेट को दी जाती है। रिमांड एडवोकेट मामला समझता है। दस्तावेज का अध्ययन करता है और उसके बाद वह आरोपी की ओर से पक्ष रखता है। वह साबित करने का प्रयास करता है कि मामला संगीन नहीं है। इस कारण उसे हिरासत में नहीं भेजा जाना चाहिए।
महत्वपूर्ण भूमिका है रिमांड एडवोकेट की
कई बार छोटे-छोटे मामले में किसी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करा दी जाती है। ऐसे में पुलिस उसे बिना वारंट के गिरफ्तार कर लेती है और उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया जाता है। कई बार यह बात भी सामने आयी है कि जमानती मामले में भी आरोपी को जेल भेज दिया गया है। इस कारण रिमांड एडवोकेट रखने का प्रावधान किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया है निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने हर अदालत में रिमांड एडवोकेट रखने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में हाईकोर्ट ने यह आदेश जारी किया है। झालसा को भी इसका पैनल तैयार करने को कहा गया है।