भोपाल। राष्ट्रीय बाल आयोग ने मध्यप्रदेश सहित अन्य सभी राज्यों को सुझाव दिया है कि बच्चों को स्कूल नहीं भेजने वाले अभिभावकों को चुनाव लड़ने के लिए अपात्र घोषित किया जाए। अभी डिफाल्टर एवं जिनके घरों में टॉयलेट नहीं है, वे निकाय-पंचायत चुनाव नहीं लड़ सकते। इसी तरह बच्चों को पढ़ाई से वंचित करने वालों को भी चुनाव लड़ने रोकने की मांग की गई है।
मप्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग की पहल पर यह कवायद शुरू हुई है। आयोग के अध्यक्ष डॉ. राघवेन्द्र शर्मा ने बताया कि उन्होंने इस मांग के संदर्भ में राष्ट्रीय बाल आयोग की अध्यक्ष स्तुति कक्कड़ को पत्र भेजा था। इस सुझाव पर राष्ट्रीय अध्यक्ष ने तुरंत संज्ञान लेते हुए मप्र सहित देश के सभी राज्य सरकार को पत्र भेजकर ऐसी नीति बनाने का आग्रह किया है। आयोग का मानना है कि इससे ग्रामीण क्षेत्रों में बाल शिक्षा का प्रतिशत सुधरेगा।
आयोग के सदस्य ने किया दौरा
डॉ शर्मा ने बताया कि हाल ही में राष्ट्रीय बाल आयोग के सदस्य(शिक्षा) प्रियंक कानूनगो ने मप्र का दौरा किया। उन्होंने भी इस मुद्दे पर चर्चा की है। डॉ राघवेन्द्र ने बताया कि अभी प्रदेश में बिजली बिल अथवा अन्य ड्यूज रहने (डिफाल्टर) अथवा घर में टॉयलेट न होने पर स्थानीय निकाय एवं पंचायत चुनाव लड़ने की पात्रता नहीं है। इसी के साथ यह शर्त भी जोड़ी जाए कि 6 से 14 साल तक की उम्र के बच्चों को स्कूल न भेजने वाले अभिभावकों को भी चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया जाए। बाल आयोग अध्यक्ष ने बताया कि इस तरह की नीति बनने से शिक्षा को लेकर जन जागृति बढ़ेगी। खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों एवं ऐसे वर्ग में शिक्षा का प्रसार बढ़ेगा जो उसके प्रति गंभीर नहीं रहते।