नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट उम्रकैद के साथ 'सश्रम' शब्द जोड़ने के कानूनी पहलू पर विचार करने को तैयार हो गया है। शीर्ष अदालत देखेगी कि कोर्ट के पास आजीवन कारावास के दोषियों की सजा में सश्रम जोड़ने का वैधानिक अधिकार है या नहीं।
दरअसल, राम कुमार शिवाड़े को हत्या के मामले में निचली अदालत ने सश्रम आजीवन कारावास की सजा दी थी। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था। आइपीसी या सीआरपीसी में उम्रकैद के साथ सश्रम शब्द का उल्लेख नहीं होने को आधार बनाते हुए इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। हाई कोर्ट के फैसले को असंवैधानिक और न्यायालय के अधिकार से परे बताया गया है।
याची के अधिवक्ता परमानंद कटारा ने उच्च न्यायालय के निर्णय को मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 14 और 21) का भी उल्लंघन बताया। जस्टिस पीसी पंत की अध्यक्षता वाली पीठ इस पर विचार करने के लिए तैयार हो गई है। शिवाड़े ने 5 जनवरी, 2010 को दुर्ग जिले में सरकारी अस्पताल के पास एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी।