राकेश दुबे@प्रतिदिन। बांग्लादेश के गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल ने कहा है-आतंकियों को पनाह देने और आतंकी कृत्यों को बढ़ावा देने के लिए पाकिस्तान को अलग-थलग कर दिया जाना चाहिए। दरअसल, यह दक्षेस के समय से दिखायी जाने वाली सद्भावना का ही विस्तार है, लेकिन इतने भर से इसका महत्त्व बासी नहीं हो जाता. ऐसे समय जब पाकिस्तान अपने यहां होने वाले दक्षेस शिखर सम्मेलन के स्थगन की नैतिक पराजय पचा कर भी भारत में आतंकवादी हमलों को अंजाम देने में लगा है। बांग्लादेश के आकलन का कूटनीतिक महत्त्व है। दक्षेस का स्थगन ही पाकिस्तान का आतंकवाद के समर्थन जारी रखने के विरोध में हुआ था। इसमें सभी सदस्य देशों का समर्थन भारत को मिला था। यही माहौल 'हार्ट आफ एशिया' आयोजन में भी रहा था। सम्मेलन में पारित 'अमृतसर प्रस्ताव' का हरफ दर हरफ पाकिस्तान-आतंकवाद के विरुद्ध था।
इसके बाद, बांग्लादेश का यह ताजा बयान मानो भारत को याद दिलाने के लिए आया है कि वह पाकिस्तान को वैश्विक बिरादरी में अलग-थलग करने का अपना अभियान सुस्त न पड़ने दे। इस काम में बांग्लादेश का भी साथ है. निश्चित रूप से बांग्लादेश का भी इसमें हित है। वह भी पाकिस्तान प्रायोजित-समर्थित आतंकवाद से पीड़ित है। उसकी क्रूरता के अमिट ऐतिहासिक साक्ष्य हैं। इसके अलावा, पाकिस्तान बांग्लादेश की राजनीति में टांग अड़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ता है। वह अब भी ढाका को अपना उपनिवेश मानता है। बंगलादेश की इस्लामाबाद के प्रति बनी चिढ़ भारत के लिए नैतिक साथ का अवसर है, लिहाजा, नई दिल्ली को अपने पक्ष में बने इस विश्वास के वातावरण का विस्तार करना चाहिए। इसको सतत अभियान का हिस्सा बनाना चाहिए।
ऐसे समय में जब चीन-मास्को-पाकिस्तान एक लाइन में होते दिख रहे हैं। जिससे भारत के क्षेत्रीय हित प्रभावित हो सकते हैं; नई दिल्ली को चाहिए कि वह अभियान को जारी रखे। दुनिया को यह बताना जारी रखे कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद विश्व के लिए कैसा खतरा है? संभव हो तो पाकिस्तान को एहसास कराया जाए कि उसकी भलाई अमन में है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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