
हमारे बैंकिंग सिस्टम के लिए फिशिंग कोई नई बात नहीं है। गाहे-बगाहे ठगी की ऐसी साइट्स पकड़ में आती रही हैं। इन्हें रोका जा सकता है और बैंकिंग सिस्टम को हैकिंग व फिशिंग जैसे खतरों से बचाया भी जा सकता है, बशर्ते इस दिशा में पुख्ता तैयारियां हों। भारत सरकार ने इस दिशा में काफी देर से सोचना शुरू किया और सन 2013 में देश की पहली साइबर सुरक्षा पॉलिसी बनी। इसके बाद इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम, नेशनल साइबर कोऑर्डिनेशन सेंटर से लेकर टेलीकम्युनिकेशन और रक्षा क्षेत्र में काफी काम भी हुआ। लेकिन चीन और रूस के हैकरों की कारस्तानियों को देखते हुए इस तरह की तैयारियां और सेटअप आज तकरीबन आउटडेटेड ही मानी जाएंगी।
हर साल संसद में बताया जाता है कि इस वर्ष एक हजार सरकारी वेबसाइट्स हैक हुईं तो पिछले साल डेढ़ हजार हुई थीं। वर्ष 2015 में राज्यसभा में बताया गया कि साइबर अटैक के खतरों से निपटने के लिए नेशनल साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर भी बनाया जाना है, जिसे मंत्रालय की स्वीकृति मिल चुकी है, लेकिन यह अभी तक नहीं बना है। अभी हमारे देश में भारी संख्या में आउटडेटेड कंप्यूटर सिस्टम चल रहे हैं जो साइबर ठगों का सबसे आसान टारगेट हैं। यही हाल मोबाइल फोन के सेटों में है। लोग सस्ते मोबाइल फोन से ही काम चलाते हैं जिनकी सुरक्षा व्यवस्था में लगातार झोल पकड़े जाते रहे हैं। जाहिर है, हमारी साइबर सिक्यॉरिटी की व्यवस्था सुस्त सरकारी तंत्र में घटिया कोऑर्डिनेशन का शिकार है। रही-सही कसर घटिया क्वालिटी के कंप्यूटर और मोबाइल पूरी कर दे रहे हैं। सरकार साइबर सुरक्षा को अपने अजेंडे में सबसे ऊपर रखे और इसके लिए हरसंभव कोशिश हो।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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