भारत पृथ्वी, आकाश और नाग से लेकर अग्नि तक कई तरह की मिसाइलें बना चुका है। उन सबके परीक्षण कामायाब रहे हैं और कम से कम मिसाइल व रॉकेट तकनीक के क्षेत्र में भारत की महारत पर किसी को कभी शक नहीं रहा। सोमवार को हुआ अग्नि-5 का परीक्षण एक अलग महत्व रखता है। ताजा परीक्षण के बाद भारत उन पांच देशों के साथ खड़ा हो गया है, जो इंटर-कांटिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल बनाने की क्षमता रखते हैं। अग्नि-5 मिसाइल 5,000 से 5,500 किलोमीटर तक मार कर सकती है। यानी इस लिहाज से यह पूरे एशिया और यूरोप व अफ्रीका के कुछ हिस्सों तक मार कर सकती है। वैसे चीन के कुछ विशेषज्ञों ने कहा है कि अग्नि-5 की वास्तविक क्षमता 8,000 किलोमीटर तक हो सकती है, लेकिन रक्षा मंत्रालय ने इसे 5,500 किलोमीटर ही कहा है। हालांकि ताजा परीक्षण 2,500 किलोमीटर की रेंज पर निशाना साधकर किया गया है, जबकि इसकी क्षमता कहीं अधिक है। परीक्षण कितना सफल रहा, इसे इससे समझा जा सकता है कि मिसाइल ने 2,500 किलोमीटर की दूरी सिर्फ 19 मिनट में तय कर ली।
परमाणु बम की क्षमता वाली अग्नि-5 का कामयाब परीक्षण यह संदेश भी देता है कि भारत अब अपनी रक्षा आवश्यकताओं को पाकिस्तान के संदर्भ में ही नहीं देख रहा, बल्कि अब वह उससे कहीं आगे बढ़कर सोच रहा है। यही रास्ता है, जो हमें विश्व शक्ति बनने की ओर ले जाता है।
अग्नि-5 के इस परीक्षण को मिसाइल तकनीक व नियंत्रण संधि से भी जोड़कर देखा जाएगा। इस साल अक्तूबर में ही भारत इस संधि में शामिल हुआ था। इसके पहले तक जब भारत कोई मिसाइल परीक्षण करता था, तो पश्चिमी देश उसका विरोध इस बिना पर करते थे कि वह बिना मिसाइल संधि पर दस्तखत किए परीक्षण कर रहा है। हालांकि इस संधि में शामिल होना न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में शामिल होने जितना कठिन भी नहीं था, जहां चीन उसका रास्ता रोककर खड़ा है।
कुछ अन्य कारणों से इटली ने जरूर एक बार भारत को इसमें शामिल होने से रोका, अन्यथा भारत के लिए कोई बाधा थी ही नहीं, क्योंकि चीन अभी तक इस संधि में शामिल हुआ ही नहीं है। भारत अब बिना रोक-टोक इस तरह की मिसाइल तकनीक विकसित कर सकता है, बल्कि संधि के सदस्य देशों से उनकी तकनीक ले भी सकता है या उन्हें तकनीक दे भी सकता है। एक समय था, जब इस संधि पर दस्तखत न करने के कारण भारत को रूस से मिसाइल तकनीक हासिल करने से रोक दिया गया था। भारत ने खुद इसकी तकनीक विकसित की, इसमें बहुत कुछ हाथ उस रोक का भी था।
मिसाइल तकनीक के मामले में भारत की कामयाबी हमें हैरत में भी डालती है और गौरव बोध भी देती है, लेकिन कुछ सवाल भी खड़े करती है। इतनी उन्नत तकनीक विकसित करने वाला हमारा देश छोटी-छोटी रक्षा तकनीक के मामले में क्यों दूसरे देशों का मुंह देखता है? क्यों हम आज भी दुनिया के सबसे बडे़ हथियार आयातक बने हुए हैं? हम आकाश से मार करने वाले एक से एक मिसाइल बना रहे हैं, लेकिन छोटी तोप और मशीनगन तक के मामले में हमें दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। यहां तक कि हमें इजरायल जैसे छोटे देशों तक से हथियार खरीदने पड़ रहे हैं। मिसाइल और रॉकेट तकनीक के क्षेत्र में हमने जो सफलता हासिल की है, उसे रक्षा के दूसरे क्षेत्रों तक कैसे ले जाया जाए, यह हमारी सबसे बड़ी चुनौती है। रक्षा सामग्री के मामले में आत्मनिर्भर न होना एक ऐसी बाधा है, जो विश्व शक्ति बनने के हमारे संकल्प का रास्ता रोक सकती है।