
उन्होंने पता करवाया तो भोजन बचा था। बोले- लेकर आइए। दाल-रोटी परोसी गई। खाने के लिए मंच पर ही स्कूल की तीन बच्चियों के साथ बैठे। उन्होंने रोटी का पहला निवाला तोड़ा, उसे रख दिया। इसके बाद चार-पांच रोटियां और बीच से तोड़-तोड़कर देखीं। दाल भी देखी। एक निवाला उसमें डुबोकर खाया और सख्त अंदाज में बोले- ये रोटियां इतनी चीठी हैं कि ठीक से टूट नहीं रहीं, दाल भी पानी जैसी। रबर जैसी रोटी बच्चे कैसे खाते होंगे।
रोटियों का पंचनामा बनाकर नांदी फाउंडेशन भिजवाइए। सब्जी-चावल व मीठा तो है ही नहीं। भोजन का स्तर सुधारिए। बच्चों को ऐसा खाना नहीं खिलाएं। शाह के साथ जिले परियोजना समन्वयक अक्षय सिंह राठौर भी थे। कोठी में बंद कर रखते हैं रोटियां, तब भी ऐसी रहती हैं।