अफसरों की अदला बदली प्रताड़ना की श्रेणी में नहीं आती: हाईकोर्ट

आईएएस समाचारनईदिल्ली। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के 10 साल के शासन काल के दौरान उच्च पदों पर रहे नौकरशाहों को मोदी सरकार द्वारा हटाए जाने के खिलाफ लगाई गई याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने दिलचस्पी नहीं दिखाई है। याचिका में सरकार में ओएसडी, प्रधान सचिव व निजी सचिव के पद पर रहे सिविल सेवा से जुड़े अधिकारियों को हटाए जाने का विरोध किया गया है। 

न्यायमूर्ति बीडी अहमद और न्यायमूर्ति आशुतोष कुमार की खंडपीठ ने याची द्वारा किए गए दावे को खारिज करते हुए कहा कि हमें लगता है कि नौकरशाहों का बदलना नए लोगों को मौका देने जैसा है। पुराने अफसरों को नए स्थानों पर जिम्मेदारी दी गई है। इसका यह कतई मतलब नहीं है कि विभाग बदलने से आपको प्रताड़ित किया जा रहा है या फिर आपको पिछली सरकार के पार्टी कार्यकर्ताओं से जोड़कर देखा जा रहा है। हर स्थान पर आपको अपने काम में मन लगाना चाहिए।

एक एनजीओ द्वारा लगाई गई याचिका में 17 जून 2014 के मोदी सरकार के नोटिफिकेशन को चुनौती दी गई। कहा गया कि राजनीतिक कारणों से प्रेरित होकर केंद्र सरकार ने यह नोटिफिकेशन जारी किया है, जिसके तहत मंत्रालयों और महत्वपूर्ण विभागों में मौजूद नौकरशाहों को पद से हटाया जा रहा है। खंडपीठ ने इस पर कहा कि इस नोटिफिकेशन से जिस भी अधिकारी को तकलीफ थी उसे याचिका लगानी चाहिए थी। वह लोग आगे आने चाहिए जो इस नोटिफिकेशन से सच में सताए हुए हैं। एक भी सताया अधिकारी उनके सामने नहीं है। याचिका बेहद छोटी मानसिकता के साथ अदालत के समक्ष लगाई गई है।

अदालत ने कहा कि इस तरह के मामलों से निपटने के लिए केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (कैट) सही मंच है। अदालत ने एनजीओ के वकील को यह याचिका वापस लेने की सलाह दी। इसपर वकील ने कहा कि वह सोसायटी के सदस्यों से पूछकर इस बाबत अदालत को बताएंगे। मामले की अगली सुनवाई अब 25 जनवरी को होगी।

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