राकेश दुबे@प्रतिदिन। चुनाव आयोग ने एक बार फिर सरकार से राजनेताओं को एक साथ दो सीटों पर चुनाव लड़ने से रोकने के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून में बदलाव की सिफारिश की है। इससे पहले 2004 में भी उसने यह सिफारिश की थी, मगर उस पर कोई पहल नहीं हो पाई। न्यायमूर्ति एपी शाह की अध्यक्षता वाले विधि आयोग ने भी एक उम्मीदवार के दो सीटों से चुनाव लड़ने पर रोक लगाने संबंधी सिफारिश की थी। चुनाव आयोग ने 2004 में सुझाव दिया था कि अगर कोई उम्मीदवार विधान परिषद के लिए दो सीटों से चुनाव लड़ता और जीतता है, तो खाली की गई सीट के लिए उससे पांच लाख रुपए वसूले जाएं। इसी तरह लोकसभा की खाली की जाने वाली सीट के लिए दस लाख रुपए जमा कराए जाएं। अब चुनाव आयोग ने कहा है कि 2004 में प्रस्तावित राशि में उचित बढ़ोतरी की जानी चाहिए। आयोग का मानना है कि इस कानून से लोगों के एक साथ दो सीटों से चुनाव लड़ने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी|
अभी तक जन प्रतिनिधित्व कानून में यह अधिकार दिया गया है कि कोई व्यक्ति आम चुनाव, विधान परिषद चुनाव या फिर उप चुनाव में एक साथ दो सीटों पर अपनी किस्मत आजमा सकता है। 1996 से पहले इस प्रकार की कोई बंदिश नहीं थी। कोई व्यक्ति कितनी भी सीटों से चुनाव लड़ सकता था। मगर देखा गया कि कुछ लोग सिर्फ अपनी पहचान बनाने की मंशा से कई सीटों से चुनाव लड़ जाते थे। इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के मकसद से 1996 में जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन करके अधिकतम दो सीटों से चुनाव लड़ने का नियम बनाया गया। मगर इससे भी निर्वाचन आयोग को छोड़ी गई सीटों पर दुबारा चुनाव कराने के लिए खासी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इससे दुबारा वही प्रक्रिया शुरू करनी पड़ती है। उसी प्रकार फिर पैसे खर्च करने पड़ते हैं। प्रशासन को नाहक अपना तय कामकाज रोक कर चुनाव प्रक्रिया में भाग-दौड़ करनी पड़ती है। इसलिए लंबे समय से मांग की जाती रही है कि लोगों के कर से जुटाए पैसे को दो बार चुनाव पर खर्च करने की कोई तुक नहीं, इस नियम में बदलाव होना चाहिए।
दरअसल, एक साथ दो सीटों से चुनाव लड़ने के पीछे बड़ी वजह असुरक्षा की भावना होती है। राजनीतिक दल खासकर ऐसे नेताओं को दो जगहों से उम्मीदवार बनाते हैं, जो उनका प्रमुख चेहरा होते हैं। मसलन, वर्तमान लोकसभा के लिए हुए चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो सीटों से चुनाव लड़ा था। समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने भी दो सीटों से चुनाव लड़ा। कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी को भी दो सीटों से चुनाव लड़ाया जाता रहा है। विधानसभा चुनाव में भी पार्टियों के प्रमुख चेहरे अक्सर दो सीटों से चुनाव लड़ना सुरक्षित समझते हैं। इसलिए यह भी सवाल उठता रहा है कि अगर कोई उम्मीदवार दो में से किसी एक सीट पर चुनाव हार जाता है, तो उसे सरकार में किसी अहम पद की जिम्मेदारी सौंपना कहां तक उचित है? मगर सबसे अहम बात कि कोई उम्मीदवार महज असुरक्षाबोध के चलते दो सीटों से चुनाव लड़ता है और फिर जीतने के बाद एक सीट खाली कर उस पर दुबारा चुनाव कराने में सार्वजनिक धन के अपव्यय का कारण बनता है तो वह कहां तक उचित है?
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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