
वैसे तो कर्मचारियों का वेतन भुगतान चेक या बैंक खातों में सीधे हस्तातंरण के जरिए करने संबंधी कानून 1975 में ही लागू हो गया था, पर उसमें नगदी भुगतान का प्रावधान भी होने की वजह से कंपनियां कर चोरी के मकसद से इसका आंशिक इस्तेमाल करती रही हैं। हालांकि जबसे वेतन और सभी प्रकार के भत्तों को कर के दायरे में लाया गया है, ज्यादातर कंपनियां चेक या फिर बैंक खातों में सीधे हस्तांतरण कर वेतन का भुगतान करती हैं। कुछ मदों में अब भी सरकार की और निजी कम्पनियाँ नगदी भुगतान का सहारा लेती हैं।
कर भुगतान के मामले में वेतनभोगी लोगों की कमाई पर नजर रखना सबसे आसान होता है। इन लोगों से कर संग्रह करना भी मुश्किल नहीं होता, इसलिए कहना कठिन है कि डिजिटल माध्यमों से वेतन भुगतान की प्रक्रिया शुरू होने से सरकार को राजस्व का कितना लाभ होगा। इससे उन छोटे और मंझोले उद्यमों में काम करने वाले लोगों का कर भुगतान का दायरा जरूर कुछ बढ़ सकता है, जिन्हें कंपनियां अभी तक नगदी भुगतान करती रही हैं।
मगर नगदी भुगतान को लेकर भी मौजूदा कानून में स्पष्ट नियम है कि अठारह हजार रुपए मासिक से कम वेतन पाने वाले कर्मचारियों को ही नगदी भुगतान किया जा सकता है। चूंकि कम वेतन पाने वाले कर दायरे से वैसे भी बाहर होते हैं, इसलिए कर संग्रह का दायरा बढ़ने की बहुत गुंजाइश फिलहाल नजर नहीं आती है |सरकार को अपनी दृष्टि अन्य क्षेत्रो की तरफ भी करना चाहिए खास क्र असंगठित क्षेत्र की ओर जहाँ वेतन भुगतान की प्रणाली कष्टदायक है। कई बार मजदूरी नहीं भी मिलती है, कभी उसका भुगतान दो-दो महीने नहीं भी होता है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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