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बता दें कि फिलहाल 49.9 प्रतिशत सरकारी नौकरियां अनुसूचित जाति, जनजाति एवं पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित हैं। मंत्रालय में अनुसूचित जाति एवं ओबीसी के मामले देखने वाले अठावले ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी प्राइवेट सेक्टर में रिजर्वेशन की जरूरत का मुद्दा उठाया था। साथ ही यूपीए सरकार ने भी इसकी संभावना की जांच करने के लिए कमिटी गठित की थी। हालांकि इससे कुछ सामने नहीं आया था।
फिलहाल अठावले का ध्यान आगामी यूपी विधानसभा चुनावों पर है। वह बीएसपी चीफ मायावती का मुकाबला करने के लिए अपने उम्मीदवारों की सूची तैयार कर रहे हैं। इस साल की शुरुआत में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए गठित राष्ट्रीय आयोग ने प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था। 1990 में गठित मंडल कमिशन की सिफारिशों में कहा गया था कि जिस भी प्राइवेट सेक्टर के उपक्रम को सरकार से किसी भी रूप में वित्तीय सहायता मिलती है, उसे अपने यहां नौकरियों में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करना चाहिए। हालांकि कभी लागू हो नहीं पाया। इन सिफारिशों में एक केंद्रीय कानून की जरूरत पर जोर दिया गया ताकि प्राइवेट सेक्टर, जॉइंट सेक्टर और कोअॉपरेटिव एंटरप्राइजेज व एनजीओ में 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया जा सके।
अठावले फिलहाल 49.5 प्रतिशत की आरक्षण सीमा को बढ़ाकर 75 फीसदी करने पर जोर दे रहे हैं ताकि अगड़ी जातियों में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को भी उसमें शामिल किया जा सके। उन्होंने कहा कि संविधान में संशोधन होना चाहिए ताकि नौकरियों और शिक्षा में रिजर्वेशन का फायदा गरीबों समुदायों तक पहुंच सके।