व्यापमं घोटाला: शिवराज बचेंगे तो उमा भारती और सुरेश सोनी फंस जाएंगे

नईदिल्ली। व्यापमं घोटाला अभी भी गले की हड्डी ही बना हुआ है। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए सीबीआई के हलफनामे को सच मानकर यदि शिवराज सिंह चौहान को निर्दोष करार दिया जाता है तो यह केंद्रीय मंत्री उमा भारती एवं संघ के दिग्गज नेता सुरेश सोनी के लिए मुश्किलों से भरा होगा। क्योंकि शीट में इनके नाम दर्ज हैं। आरोप यह था कि शीट में सीएम काटकर उमा भारती और राजभवन लिखा गया है। 

उमा भारती को इसके बाद अब आगे कई मुश्किल सवालों का जवाब देना पड़ सकता है. क्योंकि अगर सीडी से छेड़छाड़ नहीं हुई तो इसका मतलब यह भी है कि उसमें दर्ज एक्सेल शीट भी सही है, जिसमें कई फर्जी उम्मीदवारों के सामने उमा का नाम लिखा है. ये वे लोग हैं, जिन्होंने उमा सहित कई और दिग्गजों की सिफारिश लगवाकर, रिश्वत देकर व्यापमं की परीक्षाओं के जरिए चिकित्सा अधिकारी, अध्यापक, लेखा परीक्षक, सिपाही आदि की नौकरी हासिल की थी. इस मामले में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह और व्यापम घोटाला उजागर करने वाले आशीष कुमार चतुर्वेदी, प्रशांत पांडेय तथा डॉक्टर आनंद राय ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी.

याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि सीडी से छेड़छाड़ की गई है. इसमें दर्ज एक्सेल शीट में करीब 40 फर्जी उम्मीदवारों के नाम के आगे ‘सीएम’ लिखा हुआ था. यानी वे मुख्यमंत्री (शिवराज सिंह चौहान) के सिफारिशी लोग थे लेकिन राज्य पुलिस ने उनके नाम के आगे से ‘सीएम’ शब्द हटाकर उसकी जगह ‘उमा भारती’ और ‘राजभवन’ लिख दिया. मगर गुरुवार की सुनवाई में सीबीआई के वकील रंजीत कुमार ने फॉरेंसिक रिपोर्ट का हवाला देते हुए इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया. हालांकि कांग्रेस इस घटनाक्रम से विचलित नहीं दिखती. बल्कि उसके प्रदेश प्रवक्ता केके मिश्रा ने भोपाल में मीडिया से बात करते हुए सवाल दाग दिया, ‘क्या सीबीआई अब उमा भारती के खिलाफ जांच शुरू करेगी? आरएसएस के पूर्व प्रमुख केसी सुदर्शन और मौजूदा सह-सरकार्यवाह सुरेश सोनी का नाम भी सिफारिशी उम्मीदवारों के आगे दर्ज है. क्या इन लोगों के खिलाफ भी जांच की जाएगी?

घोटाला पहली बार 2013 में सामने आया था
व्यापम घोटाला पहली बार 2013 में सामने आया था. उस वक्त खबरें आई थीं कि कई उम्मीदवार मेडिकल कॉलेजों में दाखिला लेने और सरकारी नौकरियों (जिनमें भर्ती व्यापम के जरिए होती है) हासिल करने के लिए रिश्वत दे रहे हैं. इसके एवज में अधिकारी ऐसे उम्मीदवारों की मदद करने के लिए उनके बदले किसी और को प्रवेश परीक्षाओं में बैठने की इजाजत दे रहे हैं. इस खुलासे के बाद मध्य प्रदेश सरकार ने मामले की जांच के लिए एक विशेष कार्यबल (एसटीएफ) का गठन कर दिया. एसटीएफ ने जांच के दौरान व्यापम के चीफ सिस्टम एनालिस्ट नितिन महिंद्रा के कंप्यूटर की हार्ड डिस्क जब्त की. इस काम में भ्रष्टाचार उजागर करने वाले प्रशांत पांडेय ने साइबर विशेषज्ञ के तौर पर एसटीएफ की मदद की थी.

प्रशांत ने महिंद्रा के कंप्यूटर की हार्ड डिस्क का डेटा अपने पास पेन ड्राइव में सुरक्षित रख लिया. प्रशांत बाद में एसटीएफ से अलग हो गए और उन्होंने पूरे डेटा के साथ पेन ड्राइव कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के हवाले कर दी. प्रशांत का दावा है कि उन्होंने पेन ड्राइव में जो डेटा कॉपी किया था, उसमें किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं हुई थी. यानी वह पूरी तरह वैसा है, जैसा नितिन महिंद्रा के कंप्यूटर की हार्ड डिस्क (जिसे एसटीएफ ने जब्त कर लिया था) में सुरक्षित था. इसी आधार पर प्रशांत ने सुप्रीम कोर्ट में भी दलील दी कि मूल एक्सेल शीट में 40 उम्मीदवारों के नामों के आगे लिखे ‘सीएम’ शब्द को हटा दिया गया. इनमें से 23 के सामने उमा भारती और बाकी के आगे ‘राजभवन’ लिख दिया गया.

प्रशांत के मुताबिक, एसटीएफ के अफसरों ने अपने उच्च अधिकारियों से मिले निर्देश के हिसाब से एक्सेल शीट में यह छेडछाड़ की थी. प्रशांत के ही दावे को आधार बनाकर दिग्विजय सिंह ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में हलफनामा दायर कर इसी तरह के आरोप लगाए. लेकिन मामले की जांच की निगरानी कर रहे उच्च न्यायालय ने उनकी दलील को आधारहीन बताते हुए खारिज कर दिया. इसके बाद सिंह और भ्रष्टाचार उजागर करने वाले अन्य लोगों ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की थी. इस अपील के बाद ही पिछले साल शीर्ष अदालत ने मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी. इसके बाद से सर्वोच्च न्यायालय ही सीबीआई जांच की निगरानी कर रहा था.

लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने निगरानी से इंकार किया
जांच के दौरान ही सीबीआई ने महिंद्रा के कंप्यूटर की हार्ड डिस्क की फिर से पड़ताल कराने का फैसला किया. उसे हैदराबाद स्थित केंद्रीय फॉरेंसिक साइंस लैबोरेट्री (सीएफएसएल) भेजा. सीएफएसएल ने पड़ताल के बाद नवंबर में सुप्रीम कोर्ट को सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. लेकिन गुरुवार की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने सीबीआई को निर्देश दिया कि वह सीएफएसएल की सीलबंद रिपोर्ट को भोपाल की विशेष अदालत के सामने पेश करे. साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि वह अब इस मामले की निगरानी नहीं करेगी क्योंकि मामले से जुडे करीब 170 मामलों में से अधिकांश में जांच पूरी हो चुकी है. बचे 37 मामलों में जांच पूरी करने के लिए अदालत ने सीबीआई को तीन महीने का वक्त भी दिया है.

घोटाले से उमा भारती का संबंध
व्यापम घोटाले से उमा भारती का नाम सबसे पहले दिसंबर 2013 में ही सामने आया था. उस वक्त इस घटनाक्रम से तमतमाई उमा ने न सिर्फ खुद को निर्दोष बताया था बल्कि इस घोटाले को चारा घोटाले से भी बड़ा बताया था. साथ ही उन्होंने इसकी सीबीआई से जांच कराने की मांग भी कर दी थी. उमा के गुस्से से घबराए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आनन-फानन में प्रदेश के पुलिस प्रमुख (उस वक्त नंदन दुबे थे) को उनके भोपाल स्थित बंगले पर भेजा. वहां उन्होंने किसी तरह उमा का गुस्सा शांत किया और इसके बाद घोटाले के आरोपितों की सूची से उमा का नाम हटा दिया गया. जुलाई 2015 में उमा ने एक बार फिर धमाका किया, जब उन्होंने कहा कि उनकी जान को खतरा है.

उमा का जब यह बयान आया, उस वक्त व्यापम घोटाले से जुड़े कई अहम किरदारों की संदिग्ध मौत की खबरें मीडिया में लगातार आ रही थीं. हालांकि पिछले साल जब से सीबीआई ने इस मामले की जांच अपने हाथ में ली है, तब से उमा ने कोई बयान नहीं दिया है. लेकिन अब जबकि उसी सीबीआई ने अप्रत्यक्ष रूप से सही, उमा की भूमिका पर भी सवाल खड़ा कर दिया है, तो देखना होगा कि वे कैसी प्रतिक्रिया देती हैं. वैसे, जहां तक कांग्रेस का ताल्लुक है तो उसके पदाधिकारियों का कहना है कि उनकी रुचि पहले-पहल उमा की भूमिका को ज्यादा तूल देने में नहीं थी. क्योंकि ऐसा करने से पूरा ध्यान उन पर ही केंद्रित हो जाने की संभावना थी. लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं.

कांग्रेस नेताओं को तब लगता था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पहले से ही परेशान शिवराज सिंह चौहान को आसानी से इस मामले में निकल जाने का रास्ता देना नहीं चाहेंगे. क्योंकि शुरुआत में दोनों नेताओं के बीच संबंध भी सहज नहीं थे. लेकिन गुजरते वक्त के साथ शिवराज ने पाला बदला और चोला भी. उन्होंने प्रदेश में आयोजित तमाम कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री को आमंत्रित किया. उन्होंने सार्वजनिक कार्यक्रमों में मोदी को ‘युग पुरुष’ और ‘देश को भगवान की ओर से दिया गया तोहफा’ जैसे तमगे दिए. चौहान का यह ‘करतब’ काम कर गया और आज प्रधानमंत्री के साथ उनके संबंध पहले से कहीं बेहतर नजर आते हैं. कांग्रेस के नेताओं की इस राय से भाजपा के कई नेता भी इत्तेफाक रखते हैं.

लेकिन इन राजनीतिक समीकरणों के बीच कांग्रेस की राय से एक सवाल भी उठता है कि क्या वह इस मामले में अपना ध्यान अब उमा भारती पर केंद्रित करने वाली है? अगर हां, तो यह बदलाव उमा के लिए एक नई तरह की मुसीबत लाने वाला साबित होगा.

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