
दिलचस्प बात यह है कि यह शत-प्रतिशत आरक्षण उस कर्नाटक में दिया जा रहा है, जहां सिर्फ 72 प्रतिशत कन्नड़भाषी हैं। जाहिर है कि यह फैसला वहां की आबादी के एक बड़े हिस्से के खिलाफ भी जाता है। ऐसा कोई प्रावधान किसी भी प्रदेश में सार्वजनिक या सरकारी क्षेत्र में नहीं है, जिसे कर्नाटक सरकार अब निजी क्षेत्र में लागू कर रही है। कन्नड़भाषियों को प्रोत्साहन देना प्रदेश सरकार की प्राथमिकता हो सकती है, लेकिन सरकार की नीति को लागू करने का जिम्मा निजी क्षेत्र पर थोपना उद्योग-विरोधी कदम ही माना जा सकता है। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इन निजी कंपनियों में पहले से जो गैर-कन्नड़भाषी काम कर रहे हैं, उनका क्या होगा? क्या उन्हें निकालकर कन्नड़भाषियों की भर्ती की जाएगी?
यह भी हो सकता है कि इसकी वजह से राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले बहुत से वे लोग नौकरियों से वंचित हो जाएं, जो दरअसल ऐसे इलाके में रहते हैं, जहां के लोगों की भाषा का स्पष्ट सीमांकन नहीं किया जा सकता। यानी वे लोग, जो भौगोलिक आधार पर तो राज्य में हैं, लेकिन भाषायी आधार पर किसी पड़ोसी राज्य के समुदाय से जुड़े हैं। फिर यह अधिसूचना संविधान के उस प्रावधान की विरोधी तो है ही, जो देश के हर नागरिक को कहीं भी, किसी राज्य में जाकर रहने और रोजगार करने का अधिकार देता है। मुमकिन है कि कर्नाटक में सत्ताधारी कांगे्रस भी यह अच्छी तरह जानती होगी कि यह मुद्दा बहुत आगे नहीं जाएगा, लेकिन फिलहाल उसने इस आदेश के बहाने खुद को कन्नड़ हितों का सबसे बड़ा संरक्षक जताने का मौका तो हासिल कर ही लिया है।
चुनाव में काले धन के इस्तेमाल को रोकने पर पिछले काफी समय से बहुत सी बातें हो रही हैं, लेकिन चुनाव के मद्देनजर लोगों को बांटने के ऐसे तरीकों को खत्म करने के लिए हमारे बीच कोई विमर्श नहीं है। इसी का नतीजा है कि बहुत सारे गड़े मुर्दे आज उखाड़े जा रहे हैं। कर्नाटक सरकार ने इस फैसले के लिए दो दशक पुरानी उस सरोजनी महिषी कमेटी की रिपोर्ट को आधार बनाया है, जिसे अब तक लोग तकरीबन भुला ही चुके थे। इस रिपोर्ट की उस समय भी खासी आलोचना हुई थी। लेकिन सरकार ने उसे फिर जिला दिया। कर्नाटक सरकार के इस फैसले में बड़ी दिक्कत यह भी है कि इससे शिवसेना जैसे दलों के उन हिंसक आंदोलनों को फिर से बल मिलेगा, जो महाराष्ट्र में सभी नौकरियां मराठीभाषियों को दिए जाने की बात करते रहे हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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