नईदिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाई कोर्ट को आदेश जारी किए हैं कि वह सेकंड अपील को ट्रायल कोर्ट में दोबारा सुनवाई के लिए तभी भेज सकती हैं, जब उसमें कोई ठोस प्रश्न या लॉ पाइंट (सब्सटेंशियल क्वेश्चन ऑफ लॉ) नहीं हो। अन्यथा हाई कोर्ट को सेकंड अपील का निराकरण करना होगा।
आमतौर पर देखा जा रहा है कि सेकंड अपील के मामलों में हाई कोर्ट बगैर सटीक कारण दिए वापस ट्रायल कोर्ट में विचार के लिए भेज देती है। हाई कोर्ट के ऐसा करने से सालों तक ट्रायल कोर्ट में चले केस फिर जीरो पर आकर खड़े हो जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से प्रदेश में हाई कोर्ट की तीनों बेंच में लंबित प्रथम और द्वितीय अपील के मामलों का तेजी से निराकरण हो सकेगा।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सी. चेलमेश्वर और जस्टिस अभय मनोहर सप्रे की बेंच ने अचल संपत्ति के मामले में दायर एसएलपी पर हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए उक्त आदेश जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि केस वापस भेजने के निर्णय लेते वक्त हाई कोर्ट को ध्यान रखना होगा कि वह जो सारगर्भित वैधानिक प्रश्न तैयार करेगी, वह केवल केस संबंधित हो। इससे बाहर कोई कारण बनाकर केस वापस नहीं लौटा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि जब सत्र न्यायालय में अपील वाद प्रश्नों के आधार पर निराकृत हो सकती है तो हाई कोर्ट यह काम क्यों नहीं कर सकती?
अपील का निराकरण करना ही हाईकाेर्ट का मुख्य काम
अधिवक्ता आनंद अग्रवाल के मुताबिक हाई कोर्ट का गठन ही मुख्य रूप से प्रथम और द्वितीय अपीलों के निराकरण के लिए हुआ है। अपील का निराकरण हाई कोर्ट से नहीं होने पर वापस ट्रायल कोर्ट में जाता है तो पक्षकार का लंबा समय और पैसा खर्च होता है। वहीं, केस जीत चुके पक्षकार को भी लाभ नहीं मिलता।