
आयोग ने पहले कहा था कि उसकी सूची में ऐसे करीब 400 दल हैं, जो कभी चुनाव नहीं लड़े। आयोग का मानना था कि इसमें ऐसे दल हो सकते हैं, जो केवल आयकर बचाने यानी काला धन को सफेद करने के लिए बने हों। एक बार राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत हो जाने के बाद राजनीतिक दलों को मिले हुए चंदे से आयकर में छूट मिल जाती है। आयकर अधिनियम में इस पर विचार और संशोधन जरूरी है।
जिन दलों की सूची सामने आई उनमें दिल्ली से पंजीकृत होने वालों के ऐसे-ऐसे पते दर्ज हैं, जहां आज मंत्री और सांसद रहते हैं. कुछ अन्य पतों पर भी दलों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली। इससे पहली नजर में यह मत बनता है कि ये सब कागजी या फर्जी दल हैं। निस्संदेह, इनमें से ऐसे दल हो सकते हैं, जो किसी बुरे उद्देश्य के लिए बनाए गए हों।
ऐसे दलों के खिलाफ कार्रवाई होनी ही चाहिए। राजनीतिक तंत्र की सफाई के लिए यह आवश्यक है। बहुत सारे दल ऐसे हैं, जो केवल नाम के हैं और वाकई कुछ नहीं करते, इनका रहना दलीय व्यवस्था का उपहास उड़ाने वाला बन जाता है, किंतु इसका दूसरा पहलू भी है, किसी दल का उस पते पर न मिलना या उसका चुनाव न लड़ना ही उसके भ्रष्ट और कागजी होने का प्रमाण नहीं हो जाता। कई बार किसी ने अच्छे उद्देश्य से कोई दल बनाया, उसने काम भी किया, पर उसे न समर्थक मिले और न इतने संसाधन कि वह चुनाव लड़ सके। उसने अपना पता भी चुनाव आयोग के यहां नहीं बदलवाया, लेकिन वह सक्रिय है। ऐसे दलों के खिलाफ कार्रवाई करके हम राजनीतिक तंत्र में सुधार नहीं कर सकते। इससे तो कम संसाधन और अच्छे विचार वाले दल बनाने से हतोत्साहित होंगे। इसलिए कोई कार्रवाई खुले मन से और व्यापक छानबीन के बाद ईमानदारी से ही की जानी चाहिए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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