मीरपुर खास। पाकिस्तान के दूर-दराज और देहात के इलाकों में अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव और उनके लिए परेशानियों की बात कोई नई नहीं है लेकिन मामला सिर्फ इतना ही नहीं है। पाकिस्तान में ऐसे बहुत से हिन्दू मां-बाप हैं, जिनके ना चाहते हुए भी उनकी बेटियों को सूदखोर उठाकर ले जाते हैं।
पाकिस्तान के सिंध की जीवती की उम्र बमुश्किल 14 साल की है लेकिन उसको अब अपने परिवार से दूर जाना है क्योंकि उसकी शादी कर दी गई है। जिस आदमी से उसकी शादी हुई है, उसने जीवती को अपने कर्ज के बदले खरीद लिया है। उसकी कीमत (करीब 1000 अमेरिकी डॉलर) लगी है। जीवती की मां अमेरी खासी कोहली की मौजूदगी में ये शादी हुई है क्योंकि उनके नए दामाद का उन पर कर्ज है और उनके पास सिर्फ एक यही तरीका था उस कर्ज को चुकता करने का। उनके पैसा देने वाले शख्स ने आकर उनकी बेटी को चुन लिया और उन्हें ना चाहते हुए भी अब बेटी के उस आदमी के साथ भेजना होगा।
वो बताती हैं कि उनके शौहर ने कर्ज लिया था जो बढ़ कर दोगुना हो गया और वो जानती है कि इसे चुराना उनके बस की बात नहीं है। रकम ना चुका पाने पर अमेरी की बेटी को वो शख्स ले गया, जिससे उन्होंने उधार लिया था। अमेरी को पुलिस से भी इस मामले में कोई उम्मीद नहीं है।
लड़की को ले जाना वाला, उससे कुछ भी करा सकता है
औरतों को यहां प्रोपर्टी की तरह ही देखा जाता है। उसे खरीदने वाला उसे बीवी बना सकता है, दूसरी बीवी बना सकता है, खेतों में काम करा सकता है, यहां तक कि वो उसे जिस्मफरोशी के धंधें में भी धकेल सकता है क्योंकि उसने उसकी कीमत चुकाई है और वो उसका मालिक बन गया है।
आमेरी कहती हैं कि सूदखोर अपने कर्जदार की सबसे खूबसूरत और कमसिन लड़की को चुन लेते हैं। ज्यादातर मामलों में वो लड़की को ईस्लाम में दाखिल करते हैं, फिर उससे शादी करते हैं और फिर कभी आपकी बेटी वापस नहीं आती। वो कहती हैं कि हम पुलिस स्टेशन या कोर्ट जाते हैं लेकिन इससे कोई फायदा नहीं क्योंकि हम हिन्दू हैं और हमारी सुनवाई कहीं नहीं है।
अमेरी और उनकी बेटी जीवती की ये स्टोरी टाइम्स ऑफ इंडिया ने की है लेकिन पाकिस्तान में इस तरह की ये कोई अकेली घटना नहीं है। ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स 2016 की रिपोर्ट कहती है कि 20 लाख से ज्यादा पाकिस्तानी गुलामों की जिंदगी बसर कर रहे हैं, इनमें अल्पसंख्यकों की बड़ी तादाद है। जिनसे खेती-बाड़ी से लेकर घर तक के काम कराए जाते हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान में हर साल 1000 हिंदू और ईसाई लड़कियों (ज्यादातर नाबालिग) को मुसलमान बनाकर शादी कर ली जाती है।
गरीब अल्पसंख्यकों की लड़कियां होती हैं सबसे ज्यादा शिकार
पाकिस्तान में इस तरह के मामलों के लिए लड़ने वाले एक संगठन से जुड़े गुलाम हैदर कहते हैं कि वो खूबसूरत लड़कियों को चुनते हैं। हैदर कहते हैं कि इसका शिकार होने वाले गरीब परिवार होते हैं। यहां तक ना मीडिया के कैमरे पहुंचते ना पुलिस स्टेशन में इनकी कोई सुनवाई होती है।
दक्षिण पाकिस्तान में इस तरह के मामले बहुत सामने आते हैं। मानवाधिकार संगठनों और पुलिस की कोशिशों से अगर कोई लड़की मिल भी जाती है और उसे वापस मां-बाप को देने की बात होती है तो ज्यादातर मौकों पर लड़की अपनी मर्जी से शौहर के साथ जाना कुबूल कर लेती है। ऐसा अमूमन इसलिए भी होता है क्योंकि वो नहीं चाहती कि बाद में उनकी वजह से उनके मां-बाप को किसी परेशानी का सामना करना पड़े।