
नगरौटा में सेना की 16वीं कोर का मुख्यालय है। यह बात गले नहीं उतर रही है कि पठानकोट और उड़ी जैसे मजबूत सैन्य ठिकानों के बाद इस तीसरे बड़े फौजी अड्डे को निशाना बनाने में भी आतंकी कैसे कामयाब हो गए। पठानकोट हमले के बाद सैन्य तथा सुरक्षा ठिकानों की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत बनाने के लिए रक्षा मंत्रालय ने देश के पूर्व उपसेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फिलिप कैंपोस की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी, जिसने मई के मध्य में ही अपनी सिफारिशें रक्षा मंत्रालय को सौंप दी थी। इसके बाद तीनों सैन्य मुख्यालयों में सुरक्षा उपायों को लेकर बातचीत हुई, फिर भी रक्षा के ठोस उपाय नहीं किए जा सके।
आज भी देश में सैकड़ों आर्मी बेस और संस्थान हैं, जिनमें सीसीटीवी तक नहीं लगाए गए हैं। दूसरे सुरक्षा इंतजामों, जैसे सेंसर्स और अन्य आधुनिक निगरानी उपकरणों की तो बात ही दूर है। मुश्किल यह है कि जब भी सरकार से इस बारे में कोई सवाल किया जाता है, तब सत्ता पक्ष इसका तार्किक जवाब देने की जगह सवाल खड़ा करने वाले को ही कठघरे में खड़ा करने लगता है। आज सरकार समर्थक कई संगठन कुछ ऐसा माहौल बनाने में लगे हैं, जैसे रक्षा संबंधी कोई भी प्रश्न उठाना खुद में कोई देशद्रोही बात है। यह सोच पूरी तरह गलत है। इससे भ्रम और भय फैलता है। बेहतर होगा कि सरकार खुद आगे आकर नागरिकों को आश्वस्त करे।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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