नई दिल्ली। आरक्षित वर्गों के छात्रों को उच्च शिक्षा में मिल रहे लाभों को लेकर देश के सभी आईआईटी संस्थानों ने सवाल उठाए हैं। आईआईटी संस्थानों ने सरकार को सुझाव दिया है कि पिछड़े छात्रों को फीस में छूट या माफी देने के बजाय सरकार को रिइंबर्समेंट सिस्टम लाना चाहिए।
आईआईटी संस्थानों का मानना है कि एससी, एसटी के छात्रों को फ्री एजुकेशन देने के कारण आईआईटी संस्थानों की वित्तीय स्थिति पर असर पड़ रहा है। देश के सभी आईआईटी संस्थानों के डायरेक्टर्स 12 दिसंबर को आईआईटी कानपुर में सभी आईआईटी डायरेक्टर्स की 155वीं बैठक हुई थी।
इस बैठक में सभी डायरेक्टर्स ने एकमत होकर इस प्रस्ताव को आईआईटी काउंसिल के पास भेजने का फैसला लिया। आईआईटी काउंसिल के अध्यक्ष मानव संसाधन विकास मंत्री हैं। 2016 की शुरुआत में मानव संसाधन विकास मंत्री ने सभी आईआईटी संस्थानों में 2017 से फीस 90,000 रुपए सालाना से बढ़ाकर 2 लाख रुपए करने की घोषणा की थी।
वहीं एससी एसटी छात्रों व शारीरिक रूप में अक्षम छात्रों की फीस में पूरी छूट दी गई। इसके अलावा सरकार ने ऐसे छात्रों को शिक्षा ऋण में ब्याज पर छूट दी है, जिनके परिवार की सालाना आमदनी 9 लाख रूपए से कम है।
आईआईटी संस्थानों के इस विवादास्पद प्रस्ताव के बाद सियासी बवाल खड़ा हो सकता है।गौरतलब है कि देश के तमाम आईआईटी संस्थानों में एससी एसटी और पिछड़ा वर्ग के छात्रों को फीस में छूट दी जाती है। हालांकि आईआईटी डायरेक्टर्स ने ये भी सुझाव दिया है कि आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों को फीस में पूरी या आंशिक छूट देने के बजाय सरकार को ब्याज रहित लोन देना चाहिए।