
सांगये ने कहा कि यह कोई मांग नहीं है, लेकिन अगर ऐसा होता है, तो इसमें भारत के भी हित निहित हैं। भारत पहले ही तिब्बतियों के लिये बहुत कुछ कर रहा है लेकिन हम चाहते हैं कि भारत सरकार मजबूती के साथ तिब्बत की समस्या पर अपनी आवाज बुलंद करे।
तिब्बतीयों की बड़ी आबादी भारत में रह रही है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति भवन में दलाई लामा को बुलाना एतिहासिक घटना है। इससे स्पष्ट हो गया है कि भारत तिब्बतियों को पूरा सम्मान दे रहा है लेकिन अगर प्रधानमंत्री मोदी खुलकर आगे आयें, तो हमारे मकसद को मजबूती मिलेगी।
सांगये ने कहा कि हमारे सामने मंगोलिया का उदाहरण हैं, मंगोलिया ने दलाई लामा के दौरे पर चीन के विरोध के बावजूद अपना मजबूत स्टैंड लिया व विरोध को दरकिनार किया। मंगोलिया की बड़ी आबादी बुद्धिस्ट है, ये लोग दलाई लामा को भगवान की तरह पूजते हैं लेकिन चीन इस सच्चाई को नहीं समझता। उन्होंने कहा कि चीन की हर मामले में टांग अड़ाने की आदत है। मंगोलिया ने चीन को स्पष्ट संदेश दे दिया है। सांगये ने माना कि मौजूदा दौर में तिब्बत मसले पर चीन व दलाई लामा के प्रतिनिधियों के बीच बातचीत का सकारात्मक महौल तैयार नहीं हो रहा है। 2010 से बना यह गतिरोध आज भी कायम है लेकिन चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के दौर में कोई प्रयास चीन की ओर से नहीं हुआ।