
लाइफ इंश्योरेंस एजेंट फेडरेशन एसोसिएशन के अध्यक्ष रमेश व्यास ने अपने सदस्यों का एक वाट्सएप ग्रुप बनाया था। इस ग्रुप पर उन्होंने सदस्य रहे प्रफुल्ल शर्मा को अनुशासनहीनता के आरोप में संगठन से बाहर कर दिया था। उनके निष्कासन का पत्र उन्होंने तैयार किया और उस पत्र को वाट्सएप ग्रुप पर अपलोड कर दिया। पत्र अपलोड होते ही सदस्यों ने प्रतिक्रिया देना शुरू कर दी। किसी ने भद्दे कमेंट लिखे तो किसी ने तंज कसे। कमेंट पढ़ने के बाद शर्मा ने अध्यक्ष के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी।
अध्यक्ष व्यास ने अग्रिम जमानत के लिए पहले सत्र न्यायालय में प्रयास किया। सत्र न्यायालय ने यह कहते हुए आवेदन निरस्त कर दिया कि ग्रुप एडमिन ने पत्र अपलोड कर सदस्यों को उकसाया है। शर्मा की प्रतिष्ठा को खराब किया है। ऐसी स्थिति में उन्हें अग्रिम जमानत कैसे दी जा सकती है। इसके बाद व्यास ने अधिवक्ता मनीष यादव के जरिए हाई कोर्ट में अवकाशकालीन बेंच के समक्ष अग्रिम जमानत के लिए अपील दायर की।
जस्टिस वेदप्रकाश शर्मा के समक्ष सुनवाई हुई। पुलिस की तरफ से कहा गया कि एडमिन ने जानबूझकर पत्र अपलोड किया, ताकि सदस्य उस पर प्रतिक्रिया दे सकें। सत्र न्यायालय ने भी इस तथ्य को माना है। वहीं व्यास की तरफ से कहा गया कि यह एक सामान्य प्रक्रिया है। संगठन से जुड़े तमाम दस्तावेज, निर्णय ग्रुप पर अपलोड होते हैं। सदस्य उस पर अपनी राय इसी तरह देते हैं। कोर्ट ने निर्णय दिया कि एडमिन ने किस तरह सदस्यों को उकसाया यह साबित नहीं हो रहा है। लिहाजा अग्रिम जमानत देने में कोई हर्ज नहीं।
विशेष मामलों की होती है सुनवाई
हाईकोर्ट में वैसे तो शीतकालीन अवकाश चल रहे हैं, लेकिन अग्रिम जमानत तथा तत्काल न्याय की जरूरत को देखते हुए एक कोर्ट चालू रहती है। इस विशेष कोर्ट में याचिका, अपील लगाकर राहत मिल सकती है।