अरुणाचल: चुनाव कांग्रेस ने जीता था, अब सिर्फ 1 विधायक बचा है

अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी राजनीतिक संकट से जूझती नजर आ रही है. पार्टी के बचे तीन में से 2 विधायक सोमवार को बीजेपी में शामिल हो गए। 2014 लोकसभा चुनाव हारने के बाद लगातार राज्यों की सत्ता से कांग्रेस पार्टी बाहर हो रही है। चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने 'कांग्रेस मुक्त' भारत का नारा दिया था। अगर बचे हुए इकलौते विधायक भी पार्टी से मुंह मोड़ लेते हैं तो राज्य की सत्ता कांग्रेस मुक्त हो जाएगी।

2014 में जीता था अरुणाचल 
अरुणाचल प्रदेश में 2014 में विधानसभा चुनाव हुए थे और तब नबाम टुकी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार ने भारी बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की थी लेकिन जीत की ये खुशी कांग्रेस ज्यादा वक्त तक सेलिब्रेट नहीं कर पाई और एक साल के बाद ही कांग्रेस विधायकों में मुख्यमंत्री नबाम टुकी के खिलाफ असंतोष पनपने लगा। ये असंतोष जल्द ही बगावत में बदल गया। नबाम टुकी की सरकार को राज्यपाल ने इस बिना पर बर्खास्त कर दिया कि 60 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 47 में से 21 विधायकों ने मुख्यमंत्री के खिलाफ बगावत की थी। जनवरी के आखिरी हफ्ते में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।

बीजेपी की मदद से कलिखो पुल बने सीएम
राज्य में राष्ट्रपति शासन को एक महीना भी पूरा नहीं हो पाया और राज्यपाल राजखोवा ने कांग्रेस के बागी गुट के नेता कलिखो पुल को भाजपा के 11 विधायकों के समर्थन के आधार पर 19 फरवरी को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी। कांग्रेस ने सर्वोच्च न्यायालय में इसे चुनौती दी और वहां जस्टिस जेएस केहर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने 13 जुलाई को अपने ऐतिहासिक फैसले में राज्यपाल के फैसले को अवैध और असंवैधानिक करार दिया तथा नबाम टुकी के नेतृत्व वाली सरकार को बहाल कर दिया। 47 साल के कलिखो पुल 145 दिन ही मुख्यमंत्री रह पाए। 9 अगस्त को उन्होंने फांसी लगाकर जान दे दी।

नबाम टुकी की दूसरी पारी चार दिन चली
नबाम टुकी की सरकार 13 जुलाई को बहाल हुई लेकिन 16 जुलाई को कांग्रेस विधायक दल की बैठक में टुकी की जगह पेमा खांडू को विधायक दल का नेता चुन लिया गया। 44 विधायकों ने उनका समर्थन किया जिनमें कांग्रेस के 15 और कलिखो पुल सहित पार्टी के वे 29 असंतुष्ट विधायक भी शामिल थे, जो फरवरी में पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल (पीपीए) से जुड़ गए थे। 17 जुलाई को पेमा मुख्यमंत्री बने और लगा कि अरुणाचल का सियासी संकट खत्म हो गया। लेकिन ये सच्चाई नहीं थी।

सितंबर में कांग्रेस को लगा असली झटका
सितंबर के मध्य में एक नाटकीय घटनाक्रम के तहत मुख्यमंत्री पेमा खांडू और 42 अन्य विधायकों ने पार्टी छोड़ दी और अरुणाचल पीपुल्स पार्टी में शामिल हो गए। पीपीए भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले पूर्वोत्तर जनतांत्रिक गठबंधन की घटक है। खांडू के नेतृत्व वाली सरकार का समर्थन करने वाले दो निर्दलीय विधायक भी पीपीए में शामिल हो गए। कांग्रेस में केवल नबाम टुकी रह गए। यानी अरुणाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार दरअसल पीपीए की सरकार हो गई।

पेमा अब भाजपा में 
29 दिसंबर का रात पेमा खांडू और छह अन्य को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में पीपीए से निलंबित कर दिया गया। पार्टी ने खांडू को विधायक दल के नेता पद से भी हटा दिया। इसके बाद पेमा अपने तमाम समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए। कांग्रेस के अब तक बचे 3 बफादार विधायकों में से 2 का धैर्य इस बार टूट गया और वो भी भाजपा में शामिल हो गए। अब अरुणाचल विधानसभा में जहां कांग्रेस का बहुमत था, मात्र 1 कांग्रेसी विधायक बचा है। 

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