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जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर टेकाडी ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले इस चिखलाबर्डी गांव में यह अनेकों नाबालिक माताऐं हैं। जिनका 14 वर्ष की उम्र में विवाह कर दिया गया और 18 वर्ष की आयु में उनके 2 बच्चे भी हो गये। साक्षरता शून्य इस गांव में लडकियों, युवतियों, गर्भवती, महिलाओं और बच्चों सहित अन्य नागरिकों को शासकीय योजना का कोई लाभ नही मिल पा रहा है। उन्हें दस्तावेजों के अभाव में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से वितरित किया जाने वाला राशन भी उपलब्ध नही हो रहा है। इस गांव में एक ऐसी ही नाबालिक दिव्यांग मां निवास कर रही है जिसे अपने बच्चे के पिता की जानकारी भी नही है। गूंगी लड़की मजदूरी करके अपना और अपने बच्चों का जीवन यापन कर रही है।
इसी गांव में जन्मदिन मनाया था मंत्रीजी ने
2 वर्ष पहले इस गांव में पूरे शासकीय अमले और तामझाम के साथ मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने अपना जन्म दिन मनाया था। उन्होने तभी यह घोषणा की थी कि वे इस गांव को गोद लेकर सुविधा सम्पन्न बनायेगें। जिसमें सडक निर्माण ग्रामीणों का स्वास्थ्य सुविधायें राशन दुकान विधुतीकरण आगनबाडी केन्द्र का निर्माण करवाकर गांव को सुविधा सम्पन्न बनायेगे लेकिन उनकी घोषणायें खोखली निकली।
बिजली के नाम पर केवल पहले से खीची लाईन दिखाई दे रही है इस गांव में निवास कर रही बैगा बालिकायें सनोते, धनोती ,अमरवती, सवनवती ऐसी अनेक बालिकायें जो 14 वर्ष की उम्र में ही बालिकावधु बन गई इनमें से सवनिया सहित 4 बालिकायें ऐसी है जो 18 वर्ष की उम्र में 2 बच्चों की मां बन चुकी है।
कौन रेप कर गया पता ही नहीं
किसी अज्ञात व्यक्ति की हवस की शिकार गुंगी लड़की यह बताने में असमर्थ है कि उसके साथ किस व्यक्ति ने दुराचार किया है। वह 2 साल के अपने बच्चे का किसी तरह पालन पोषण कर रही है। ग्राम पंचायत टेकाडी के अंतर्गत आने वाले घने जंगलों के बीच बसा चिखलाबर्डी गांव पहुच विहिन है जहां 7 किलोमीटर उबड खबड रास्ते के जरिये पैदल पहुचना पडता है इस गांव में लगभग 60 घर बैगाओं के है 50 परिवार अन्य आदिवासीयों के हैं जो बांस कटाई अथवा लकडी काटकर झोपडी में रहते हुये अंधेरे में रात गुजरते है और अपना जीवन चला रहे है मजदूरी के नाम पर ठेकेदार इनका शोषण कर रहे है कोदो कुटकी और मक्का लगाकर कुछ आमदानी हासिल कर लेते है।
सबके आधार कार्ड पर जन्म की तारीख 1 जनवरी
इतना ही नही इस गांव के निवासियों के पास ऐसे कोई दस्तावेज नही है जिससे यह साबित हो सके कि वे किसी गांव के किस जिले के निवासी है। आधार कार्ड के नाम पर उन्हें ऐसे कार्ड थमा दिये गये है जिनमें ज्यादातर लोगों की जन्म तारीख 1 जनवरी दर्ज है। इस गांव में ज्यादातर बच्चे 5वी पास है उन्हें आगे की शिक्षा पाने का कोई साधन नही है। शाला के नाम पर 2 साल पहले भवन बनाया गया था जहां 2 शिक्षक की तैनाती है। शाला के रजिस्टर में 50 के आसपास बच्चों के नाम दर्ज है लेकिन शाला में ना तो शिक्षक पहुचते है ना बालक बालिकायें।
यह वास्तविकता है बालाघाट जिले की उस गांव की जहां लोग नारकीय जीवन व्यतीत कर रहे है उन्हें यह पता ही नही है कि सरकार उनके लिये कोई लाभकारी योजनायें चला रही है।