दंतेवाड़ा। पूरे छत्तीसगढ़ में हलचल मच गई है कि आखिर गणपति कहां गये। वह भी रातोंरात। 26 जनवरी की सुबह जब भक्त दर्शन करने पहुंचे तब वहां गणपति की प्रतिमा नहीं थी। यह कोई आम प्रतिमा नहीं थी। अनुमान के मुताबिक यह लगभग 1100 साल पुरानी थी। लगभग छह फीट ऊंची और 21 फीट चौड़ी ग्रेनाइट के पत्थरों से बनी हुई। यह पूरे राज्य और सीमावर्ती इलाकों की महामान्य प्रतिमा थी।
बैलाडीला की सबसे उंची पहाड़ियों पर स्थित प्राचीन काल की यह मूर्ति अब गायब हो चुकी है। 25 जनवरी को ग्रामीणों ने अंतिम बार इसे देखा था। गणेश चतुर्थी के दौरान दर्शन करने जब लोग पहुंचे तो गणपति की प्रतिमा गुम हो चुकी थी।
पूरे राज्य में अफसर परेशान हैं कि इतनी ऊंचाई से भला कैसे गणपति की इनती बड़ी और भारी प्रतिमा को चुराया जा सकता है। जांच के लिए टीम वहां रवाना हो गयी है। इस पूरे मामले पर सीएम खुद नजर रखे हुए हैं। खबर है कि उन्होंने गृह विभाग को खास ताकीद की है।
दक्षिण बस्तर का मुख्यालय माने जानेवाले दंतेवाड़ा से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर ढोलकल में भगवान गणेश की दुर्लभ प्रतिमा की खोज कुछ समय पहले पुरातत्व विभाग ने ही की थी। ढोलकल की पहाड़ियों पर तीन हजार फीट की उंचाई पर भव्य गणपति प्रतिमा भक्ति-भाव के साथ-साथ कौतूहल भी पैदा करती थी। यहां पहुंचना भी काफी जोखिम-भरा है। पुरात्वविदों के मुताबिक यह प्रतिमा 10वीं शताब्दी में दंतेवाड़ा क्षेत्र के रक्षक के रूप में नागवंशी राजाओं ने स्थापित की थी।
यह प्रतिमा लगभग छह फीट ऊंची और 21 फीट चौड़ी ग्रेनाइट के पत्थरों से बनी हुई थी। वास्तुकला की दृष्टि से अत्यंत ही कलात्मक थी। इस रूप में भगवान् गणेश ऊपरी दाएं हाथ में फरसा, ऊपरी बाएं हाथ में टूटा हुआ एक दंत, निचले दाएं हाथ में अभय मुद्रा में अक्षयमाला तथा नीचे बाएं हाथ में मोदक धारण किए हुए हैं। गणपति का यह रूप और कहीं नहीं देखने को नहीं मिलता है।
मान्यताओं के अनुसार इतनी ऊंची पहाड़ी पर भगवान गणेश की स्थापना नागवंशी शासकों ने की थी। गणपति के उदर पर एक नाग का चिह्न भी था। मूर्ति-निर्माण के दौरान नागवंशियों ने यह चिह्न भगवान गणेश पर अंकित किया होगा।