भोपाल। शहडोल से लोकसभा का उपचुनाव जीते ज्ञान सिंह अब भी मप्र शासन के मंत्री हैं जबकि वो विधानसभा से इस्तीफा दे चुके हैं। ज्ञान सिंह कैबिनेट की मीटिंग में नहीं जाते लेकिन बतौर कैबिनेट मीटिंग फाइलें निपटा रहे हैं। मंत्रालय में काम कर रहे हैं। वरिष्ठ भाजपा नेता बाबूलाल गौर ने ज्ञान सिंह के मंत्री बने रहने की नैतिकता के सवाल पर कहा कि राजनीति में अब नैतिकता बची कहां हैं। राजनीति तो अब व्यवसाय हो गई है। अधिकांश नेता अब जनसेवा के बजाए अपने बेटों को धनपति बनाने और राजनीतिक भविष्य संवारने में लगे हैं।
गौर ने कहा कि ऐसे कई उदाहरण हैं जिसमें अपने बेटों और परिवार के सदस्यों के लिए नेता कई समझौते कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पहले राजनीति में नैतिकता होती थी। चूंकि ज्ञान सिंह मुख्यमंत्री की गुड लिस्ट में हैं तो उन्हें कौन हटाएगा? शायद यही कारण है कि संवैधानिक व्यवस्थाओं को भी नजरअंदाज कर दिया गया है।
इस्तीफा दे दिया तो मंत्री क्यों हैं
ज्ञान सिंह ने शहडोल लोकसभा का उपचुनाव जीतने के बाद 6 दिसंबर को विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। उनका इस्तीफा स्वीकार भी हो चुका है। इसके बाद वे विधानसभा नहीं गए और पिछले सत्र में उनके विभागों से जुड़े सवालों के जबाव सामान्य प्रशासन मंत्री लाल सिंह आर्य ने दिए थे। इसके अलावा वे दो महीने से कैबिनेट की भी किसी बैठक में शामिल नहीं हुए हैं। इसके बाद भी मंत्री पद पर उनका लगातार रहना सवालों को जन्म दे रहा है।
संवैधानिक प्रावधान है कि 14 दिन में छोड़ना होता है पद
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 101 में इस बात का साफ प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति विधानसभा का सदस्य रहते हुए लोकसभा का चुनाव जीत जाता है तो उसे 14 दिनों के भीतर दो में एक पद छोड़ना होगा।
दोबारा शपथ भी नहीं दिलाई
संविधान की धारा 164-4 के मुताबिक कोई भी व्यक्ति छह महीने तक बिना कोई चुनाव लड़े मंत्री रह सकता है पर धारा 163-3 की अनुसूची 3 में प्रावधान है कि अगर कोई जनप्रतिनिधि अन्य चुनाव जीत जाता है तो उसे फिर से शपथ लेनी होगी।
पहले बंद हुई अब फिर शुरू हुई फाइलें आना
सूत्रों की मानें तो ज्ञान सिंह के विधायक पद से इस्तीफा देने के बाद विभाग ने उनके पास फाइलें भेजना कुछ समय के लिए बंद कर दी थी और इस मामले में सामान्य प्रशासन विभाग से अभिमत मांगा था। विभाग के अभिमत मिल जाने के बाद उनके पास फाइले फिर से आना शुरू हो गर्इं हैं। ज्ञान सिंह प्रदेश के आदिम जाति कल्याण मंत्री हैं। वे कल सीएम हाऊस में अजा-अजजा छात्रों के लिए आयोजित नेतृत्व विकास शिविर में भी शामिल हुए थे। सूत्रों की मानें तो इसके बाद उन्होंने अपने बंगले जाकर विभाग से जुड़ी कई फाइलें निपटाई।
फार्मूला 75 है तो कुसुम महदेले क्यों मंत्री हैं
75 बरस की उम्र का हवाला देकर शिवराज कैबिनेट से बाहर निकाले गए पूर्व मंत्री बाबूलाल गौर दिनों-दिन मुखर होते जा रहे हैं। उनका कहना है कि जिस फार्मूले की आड़ लेकर उन्हें साजिश के तहत कैबिनेट से बाहर किया गया है, उससे वे आज भी आहत हैं। गौरतलब है कि प्रदेश के मंत्री मंडल पुनर्गठन के दौरान मुख्यमंत्री ने संगठन का हवाला देते हुए बाबूलाल गौर और सरताज सिंह को कैबिनेट से बाहर कर दिया था। अब खुद बाबूलाल गौर अपनी ही पुरानी कैबिनेट सहयोगी कुसुमसिंह मेहदेले का उदाहरण देते हुए 75 बरस की उम्र के इस फार्मूले पर सवाल उठा रहे हैं। उन्होंने पूछा है कि 75 की सीमा रेखा पार कर चुकी हमारी बहन कुसुमसिंह मेहदले के लिए भी क्या मुख्यमंत्री और पार्टी संगठन इस तरह का फार्मूला अपनाएंगे।