राकेश दुबे@प्रतिदिन। पद्म पुरुस्कार इस बार फिर विवाद में हैं। इस तरह के विवाद की मिसालें लगभग हमेशा ही मिल जाएंगी कि अमूमन सरकारें इन्हें अपनी राजनैतिक रणनीतियों को आगे बढ़ाने और खास लोगों को उपकृत करने का साधन बनाती रही हैं। इसलिए, इस बार भी अगर विवाद उठ रहे हैं तो आश्चर्य नहीं है।
शरद पवार को लेकर उभरे विवाद को बेमानी नहीं माना जा सकता। भले उन्होंने सफाई दी है कि लोक सभा और राज्य सभा में महज 12 सांसदों वाली पार्टी राष्ट्रपति चुनावों में एनडीए की क्या मदद कर सकती है? लेकिन शरद पवार के राजनैतिक रसूख से परिचित लोग जानते हैं कि उनके जैसे राजनेता का किसी पाले में होने का क्या मतलब होता है। शायद इन्हीं वजहों से मुफ्ती मोहम्मद सईद को इन सम्मानों से नवाजने की बात पर उनकी पार्टी या परिवार ने रुचि नहीं दिखाई। पीडीपी ने शायद इसे राज्य में अपनी राजनीति के लिए भी अच्छा नहीं माना होगा।
आगामी राष्ट्रपति चुनाव में गणित के लिहाज से हाल के विधान सभा चुनावों खासकर उत्तर प्रदेश में बेहतर प्रदर्शन करना भाजपा के लिए बेहद जरूरी है। यहाँ मामला आसान तो नहीं है। यही क्यों, महाराष्ट्र में शिवसेना के अलग होने के ऐलान के बाद भाजपा के लिए पवार की पार्टी राकांपा का महत्त्व और भी बढ़ गया है। पद्म पुरस्कार ढेरों ऐसे लोगों को उपकृत करने का साधन भी हैं, जिन्हें सरकार खास समझती है। हालांकि ऐसे अनाम लोगों को पुरस्कृत करते समय यह भी ख्याल रखा जाता है कि कुछ ऐसे लोगों को यह सम्मान दिया जाए जिससे विवाद को कुछ ढका जा सके। ऐसे ही शख्सियतों में इस बार इंदौर की 91 वर्षीय ‘डॉक्टर दीदी’ भक्ति यादव भी हैं, जो 68 साल से लोगों का मुफ्त इलाज करती आ रही हैं। ऐसी मानव सेवा वाकई धन्य है जब सरकार भी लोगों को मुफ्त स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने के अपने वादे से पीछे हटती जा रही है।
इन पुरस्कारों को लेकर जारी विवादों पर विचार किया ही जाना चाहिए। लंबे समय तक इन्हें खत्म करने की मांग भी उठती रही है। हालांकि, अब यह उस कदर सियासी मुद्दा नहीं बना है, लेकिन एक समय यह बड़ा सियासी मुद्दा हुआ करता था। इमरजेंसी के बाद बनी जनता पार्टी की मोरारजी देसाई सरकार ने इसी वजह से ऐसे सरकारी अलंकरणों को न देने का फैसला किया था।सरकारी अलंकरणों को लोकतंत्र की भावना के विपरीत भी माना जाता रहा है। इसे नये सिरे से विचार का मुद्दा बनाया जाना चाहिए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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