भोपाल। छिंदवाड़ा एसपी गौरव तिवारी के मामले में भूपेन्द्र सिंह नेताप्रतिपक्ष की तरह व्यवहार कर रहे हैं जबकि वो मप्र के गृहमंत्री हैं। एक बार फिर उन्होंने दोहराया है कि एसपी गौरव तिवारी ने पूर्व डीजीपी सुरेन्द्रसिंह द्वारा 18 जनवरी 2015 को जारी आदेश की गलत व्याख्या की है। बता दें कि एसपी गौरव तिवारी ने एक आदेश जारी किया है कि यदि थाने का कोई पुलिस कर्मचारी लोकायुक्त कार्रवाई में रिश्वत लेते पकड़ा जाता है तो संबंधित थानेदार के खिलाफ भी कार्रवाई होगी।
अपने अधीन आने वाले स्टाफ को बेईमानी से रोकने के लिए इस तरह के कड़े आदेश एक सामान्य प्रक्रिया है। इससे किसी को अब तक कोई नुक्सान नहीं पहुंचा है। फिर भी गृहमंत्री इस संदर्भ में एक दर्जन से ज्यादा बयान मीडिया के सामने दे चुके हैं। उनका ताजा बयान सामने आया है। गृह मंत्री ने बताया है कि छिंदवाड़ा एसपी गौरव तिवारी द्वारा लागू किया गया आदेश ठीक नहीं है। उन्होंने पूर्व डीजीपी सुरेन्द्रसिंह द्वारा 18 जनवरी 2015 को जारी आदेश को निकलवाया है। इसमें कहीं भी नहीं कहा गया है कि सिपाही की गलती की सजा टीआई को दी जाएगी। आदेश में कहा गया था कि पुलिस के विरुद्ध होने वाली शिकायतों की जांच गंभीरता से हो तथा पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों के ट्रेप होने के प्रकरणों में संबंधित इकाई प्रभारियों की क्या भूमिका रही है, इस संबंध में भी कार्यवाही करें। क्योंकि अधीनस्थ के कार्य के लिए वह सीधे रूप से बराबर के जिम्मेदार है। इसमें स्पष्ट है कि यदि निचले अधिकारी के किसी कृत्य में वरिष्ठ अधिकारी की कोई भूमिका रही हो तभी उस पर कार्यवाही की जा सकेगी।
आदेश निरस्त कर दो, बेवजह का बखेड़ा क्यों
समझ नहीं आता कि भूपेन्द्र सिंह इस तरह के बयान बार बार क्यों दे रहे हैं। आईपीएस गौरव तिवारी मात्र छिंदवाड़ा के एसपी हैं। भूपेन्द्र सिंह मप्र के गृहमंत्री। यदि एसपी ने कोई आदेश गलत जारी कर भी दिया तो आप डीजीपी को निर्देशित कर दें कि एसपी का आदेश निरस्त कर दिया जाए। एसपी के ऊपर दर्जन भर अधिकारी होते हैं। डीजीपी एक नया सर्कुलर जारी कर देंगे। एसपी का आदेश अपने आप निरस्त हो जाएगा। सामान्य सी प्रशासनिक प्रक्रिया है। मुर्दाबाद के नारे क्यों लगाए जा रहे हैं।
एसपी के आदेश से परेशानी क्या है
एसपी गौरव तिवारी ने आदेश जारी किया है कि यदि थाने का कर्मचारी रिश्वत लेता है तो थानेदार को जिम्मेदार माना जाएगा। अभी तक यह केवल एक आदेश है। कोई कानून नहीं पारित हो गया है। अधिसूचना तो जारी नहीं हो गई। एसपी को थानेदार पर कार्रवाई करने का अधिकार है। यदि वो लिखित आदेश जारी करने के बजाए क्राइम मीटिंग में मौखिक रूप से यह शब्द कह देते तब भी प्रभाव इतना ही होता। इस तरह के आदेश अपने अधीनस्थ अधिकारियों को बेईमानी से रोकने और निचले स्तर के कर्मचारियों की नियमित निगरानी करने के काम आते हैं। कार्रवाई तो हमेशा ही विधिसम्मत होती है। यदि गलत हो जाती है तो अधिकारी हाईकोर्ट चला जाता है। अपील के लिए आईजी से लेकर गृहमंत्री तक हैं। यदि एसपी थानेदार को गलत सस्पेंड कर दे तो आप उसे दूसरे ही दिन बहाल कर देना। गुस्सा ज्यादा आ रहा हो तो एसपी को ही हटा देना। कौन रोक रहा है आपको। कटनी से भी तो हटा ही दिया। किसने रोक लिया।
कहीं इसलिए तो नहीं मचल रहे मंत्रीजी
मप्र का बच्चा बच्चा जानता है कि पुलिस घूसखोर होती है। आरटीओ से ज्यादा अच्छी इमेज नही है पुलिस विभाग की। यहां थानों की बोलियां लगाई जातीं हैं। चौकियां किराए पर चढ़ाई जातीं हैं। थाने के सारे कर्मचारी दिनभर रिश्वत वसूलते हैं। शाम को टीआई के चैंबर में बंटवारा होता है। फिर यह रकम सीएसपी और एसपी तक भी पहुंचती है। सूत्र तो कहते हैं कि गृहमंत्री तक भी पहुंचती है। यदि एक एसपी रिश्वतखोरी को खत्म करना चाहता है। इस तरह का आदेश जारी कर रहा है तो इसका तात्पर्य यह भी होता है कि वो खुलेआम जता रहा है कि मुझे एसपी के लिए आने वाला हिस्सा नहीं चाहिए। आप जनता से वसूली मत करो। शायद वो यह भी कह रहा है कि मैं अपने ऊपर भी कुछ नहीं भेजूंगा। मुझसे उम्मीद मत करो। कहीं इसलिए तो नहीं मचल रहे मंत्रीजी ?
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