नई दिल्ली। एक मां अपने बच्चे के लिए सबकुछ करती है, मगर उसे मार नहीं सकती। वह ऐसा कदम तभी उठा सकती है, जब उसकी मानसिक स्थिति ठीक न हो और उसे अच्छे बुरे का भेद न हो। यह अहम टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके सिकरी व जस्टिस अभय मनोहर सप्रे की पीठ ने छत्तीसगढ़ की एक महिला को उसकी चार साल की बेटी को चाकू से हमला कर मारने के मामले में बरी कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निचली अदालतों ने इस अहम तथ्य की अनदेखी की है कि वारदात के समय महिला का मानसिक संतुलन ठीक नहीं था। उसे अच्छे-बुरे का भेद नहीं था। न ही महिला की मानिसक स्थिति की जांच कराई गई। मगर तिहाड़ जेल में कैदियों से हुई कोर्ट मित्र की बातचीत में यह तथ्य सामने आया है कि महिला मानसिक रूप से बीमार थी। ऐसे में उसे बरी किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने रायपुर जेल के अधीक्षक को महिला कोकईया बाई यादव को जेल से रिहा करने के आदेश जारी किए हैं।
13 साल पुरानी 2003 की घटना
रायपुर पुलिस ने कोकईया बाई यादव को 21 जून 2003 को उसकी चार साल की बेटी कुमारी दीपा की चाकू से गला रेतकर हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया था। निचली कोर्ट ने कोकईया को उम्रकैद की सजा दी थी। इसे हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था। मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। बताया गया कि आरोपी महिला ने जब घटना का अंजाम दिया तो उसका मानसिक संतुलन सही नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने महिला की तरफ से पक्ष रखने एवं जांच के लिए अधिवक्ता मोहम्मद मनन को कोर्ट मित्र नियुक्त किया था।
महिला को बरी करने के आदेश जारी किए
अधिवक्ता मनन ने अधिवक्ता सुधा गुप्ता के साथ रायपुर जेल का दौरा किया और कोकइया के साथ के कुछ कैदियों से बात की। जिसमें उन्हें बताया गया कि जिस समय कोकईया को जेल में लाया गया उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी। यह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश की। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि निचली अदालतों ने भी महिला की मानसिक हालत की जांच नहीं कराई थी और पुलिस फाइल में महिला द्वारा बेटी की हत्या का कारण तक दर्ज नहीं था। जेल में महिला द्वारा 13 साल बिताने के दौरान खुद में काफी सुधार किया गया। इन सभी तथ्यों के आधार पर कोर्ट ने महिला को बरी करने के आदेश जारी किए।